राखी सिंह की कविताएं



राखी सिंह की कविताओं में पीड़ा का भाव उम्मीद बनकर आता है। उनकी प्रेम-कविताओं में रचे-बसे भाव शब्दों की गत्यात्मकता के साथ आत्म में गहरे धँसती है… दुबारा आमंत्रित करती हैं। कविताएँ कहीं भी पाठकों को शब्दों के आडंबर में नहीं उलझातीं, इस कारण दिशा से भटकती नहीं हैं। उनकी कविताओं के साथ आप भी चलके देखिए।

(1) अव्यक्त अभिव्यक्ति

कुछ प्रेयसियां

अपने संकोच और अहम के केंचुल से निकलना नही चाहती
और ये भी चाहती हैं
कि प्रेयस उस खोल को भेदकर
उनकी आत्मा तक पहुंचे

प्रेम में उन्होंने स्वयं को
व्यवहारकुशल बना लिया है
मौन, मुस्कान या उदासी से
उनका थाह नही लगता
बहुत गहरी होती है
उनकी तटस्थता की खाई


वो अपने शब्द खुले नही छोड़तीं
अधूरे छूटने या के बतंगड़ बन जाने की अभ्यस्त हो चुकी
उनकी बातें,
कई परतों में लिपटी होती हैं


कॉल करूँ क्या -
प्रेयस के निवेदन पर जब प्रेयसी सपाट भाव से कहती है -
नहीं !
'नहीं’ ओट है
उसका, जो उसने कहा है -
पूछ कर करोगे ?


(2) आत्ममुग्ध


फूल जो सबसे सुंदर हो
मै उसे नही तोड़ती


अपनी लिखी सबसे निकटतम चिट्ठी
कभी नही डाली डाक में
अब तक की अपनी सबसे प्रिय कविता
नही पढ़ाया किसी को


मेरे आँसू किसी से नही देखे
मेरे अपने चुने हुए एकांत हैं
वो कोने, जिनके कंधे पर सर रख कर रोई हूँ
उन्हें भी नही बताया रोने का कारण


मेरी अपनी खींची अदृश्य लकीरें हैं
मेरे भीतर की बारिशें
केवल मेरी हैं
मैं नही पूछूँगी तुमसे
तुम कितने और कब से यूँ सूखे हो


जाने क्या-क्या जमा कर रखा है
ये भी कि याद बहुत आते हो
मगर जताऊं क्यों ?
बताना अच्छा नही लगता
मैं, तुमसे ही छुपाउंगी तुम्हारे बाबत
क्यों बताऊं ?
कि प्यार है !


मेरा कोई ऐसा संगी नही जिसके समक्ष
खोल दूं सारे पत्ते
तुम निश्चिन्त रहना !
तुम्हारा नाम मैं किसी से नही कहूंगी।

(3) प्रेम : एक नया जन्म



एक जन्म में होने वाला हर प्रेम
होता है एक नया जन्म
एक जन्म में हम लेते हैं
कई-कई जन्म


मेरा पिछला जन्म कुलांचे मार रहा
पर घुटने मजबूत दिखते नही इसके
ये अपने पैरों पर खड़ा हो पायेगा
ऐसी आशा नही मुझे


उससे पिछला जन्म प्रिय था सबसे
परन्तु किशोर वय में
मौत का ग्रास बना
अहम खाकर आत्महत्या कर ली उसने !
वो मेरे हर पुनर्जन्म में पूर्वजन्म की स्मृतियों में रहा


कुछ जन्मों का होना व्यर्थ गया
सब मरे
कुपोषित मौत !


कितने जन्म नौनिहाल ही सिधार गए
कितने जन्मों के भ्रूण हत्या का पाप है सर पर


प्रथम जन्म खाट पर पड़ा बुजुर्गवार हो चला है
कराहे भी सुनाई नही देती अब उसकी


एक जन्म में कितने जन्म जी लिए मैने
मै, एक नए जन्म की तैयारी में हूँ।


(4) अलिखित लिपि


पानी की लिपि में
लिखी थी मैने चिट्ठियां
किसी शब्दकोश की मदद से
कोई उनकी लिखावट पढ़ नही पायेगा
नही होंगी संरक्षित वो किसी पुस्तकालय में
न इतिहास के अमर प्रेमपत्रों में उनका कोई ज़िक्र होगा
वो गिरेंगी बून्द बनकर
बहेंगी नदियों की तरह
नष्ट हो कर भी
वो छोड़ जाएंगी अपनी निशानियां


(5) सशर्त प्रेम


मेरे प्रेम में पड़ने की जितनी उत्सुकता है तुममे
मुझे शंका है
मेरी स्वीकार्यता के उपरांत
तुम उतने प्रसन्न रह भी पाओगे या नहीं


मेरा प्रेम पा के क्या पाओगे तुम?


प्रेम के प्रति मेरी चिर परिचित तटस्थता विचलित करेगी तुम्हे
तुम्हारा प्रेम मुझे प्रभावित तो करेगा
पर वो प्रभाव मै सबसे छुपा लुंगी
क्या तुम नही जानते?
हर स्त्री कुशल अभिनेत्री होती है


तुम मुझपर अपना एकाधिकार चाहोगे
ये चाहना तुम्हारा अधिकार भी है
पर मेरा खिलंदड़पन तुम्हे ये जताने से रोकेगा
तुम्हारे न कहने को
मै अपनी उद्दंडता का अवसर बनाउंगी
सबके बीच मेरा चुहलपन तुम्हे खिन्न करेगा
कहो तो, करेगा कि नही?


तुम्हारी विरह मुझे पीड़ा देगी
पर स्वयं के लिए 'पीड़िता' शब्द सख़्त नापसन्द है मुझे
तुम्हारी याद में मै कलपती नही दिखूंगी
न तुम्हे, न औरों को
हाँ मै जानती हूँ,
ये बात भी खीझ भरेगी तुम में


प्रेम में महान होना
मेरी समझ से परे की बात है
मेरे लिए प्रेम स्वार्थी होने की शै है
मै तुमसे प्रेम करूंगी
तो मुझे तुम्हारा प्रेम चाहिए होगा


मेरे अनुसार
प्रेम में 'स्पेस' के लिए कोई स्पेस नही होता
लिहाजा, मुझे वक़्त-बेवक्त तुम्हे टोक सकने की स्वतंत्रता चाहिए
और मुझे अपने हर टोक की ज़वाबी कार्यवाही चाहिए


कितना बोझिल है ना ये सब?
"कोई शर्त होती नही प्यार में",
फिर भी इतनी शर्तें?
मानो प्रेम न हुआ
किसी सुपरवाइजर की ड्यूटी हो गई


तभी कहती हूँ
बात मानो मेरी,
मुझसे प्रेम न करना
तुम्हारे हित मे है।


(6) उपहार


संसार के शब्दकोश के सबसे मधुर शब्दों में शामिल है,
उपहार


मुझे गुलाब देने या लेने से अधिक रुचि
गुलाब का पौधा लगाने में है
ऐसा जाने कितनी बार,
कितने स्थानों पर कहा हो मैने
कभी किसी सामान्य बातचीत में तुमसे भी कही गई
ये बात इतनी औपचारिक रही होगी
कि मेरा कहना, मुझे स्मरण नही


तुम गुलाब भेजते, तो मुझे खीझ होती
मैसेज भेजना मेरी खिझलाहट का चरम होता
तुम्हारे फोन से मै असहज हो जाती


तुमने गुलाब का पौधा भेजा
ऐसा पहली बार हुआ था
पहली बार होना, हर बार
हरसिंगार होता है
सुगन्धित होता है
गहरा होता है
श्वास में समाते स्पर्श सा गहरा
डार्क चॉकलेट-सा गहरा
कंठ में घुल रही मिठास सा गाढ़ा


इस पौधे पर किस रंग के गुलाब उगेंगे
मैं नही जानती
पर अभी मेरी अचरज का रंग गुलाबी है
बेबी पिंक जानते हो न!
वही गुलाबी


इस उपहार के प्रतिउत्तर में तुम्हे क्या दूं?
शुक्रिया तो बिल्कुल नही!
इस मुलायम अहसास को
बोझिल करने का दुःसाहस मुझमे नही


मुस्कान भेजती हूँ
इमोजी वाले मुखौटे नही
असली मुस्कुराहट
तुम्हे अनुमति है
तुम चाहो तो आज
स्माइल डे मना लेना


इस पौधे का खिला पहला पुष्प भेजूंगी
उस दिन हम
'रोज़ डे' मनाएंगे।


(7) सर्दियां


कवि ने कहा है,
–दुनिया को
हाँथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए।
मेरा उनसे क्षमा मांगने का मन है
अभी कल ही तो मैं किसी दोस्त से कह रही थी,
संसार की हर सुंदर शै को ठंढ़ा होना चाहिए।


कवि क्या तुम
किन्ही नर्म मुलायम
ठंढी हथेलियों के
स्पर्श से अनभिज्ञ रहे?


देखो कैसी,
बर्फ़ की दो सफ़ेद सिल्लियां
बनी हुई हैं हथेलियां मेरी


दास्ताने गुमा दिए हैं मैने
सब कहते हैं,
मै जानबूझ के वस्तुओं को गुम करती हूँ।


मैं उनसे कुछ नही कहती,
गुम करना मेरा पसंदीदा शगल है।
ऐसा करके
मैं गुम हुई वस्तु को
अपनी उपलब्धता की कमी महसूस कराना चाहती हूँ।
ऊन की बुनाई में पसीने से तर-बतर दास्तानो को
मेरी ठंढी हथेलियों के स्पर्श की कमी खलती तो होगी।


मैं जताना नही चाहती
छुपा भी नही पाती
दूरी अखरती है।
कवि तुम किसी से न कहना,
मैने गर्म लिफाफे में
पश्मीने की भांति तह करके
उनतक सर्दियों का एक संदेश भेजा है,
"तुम अनुमति दो
तो इन भभकते गालों की भट्ठी में
सेंक लूं मै हथेली अपनी।"



(8) अपूर्णता


इनदिनों जबकि तुम्हारी याद आती है
कुछ कम
थोड़ा और कम
मै सोचती हूँ
दो लोग जो लंबे समय तक रह सकते थे
एक दूसरे के साथ
और एक दूसरे की यादों में
भूल भूल में
भूल जाएंगे एक दूसरे को
शीघ्र ही!
--
इतना प्यार था मेरे मन मे तुम्हारे लिए
जो मै लुटा सकती थी तुम पर उम्र भर
पर उन्हें खर्चने के अवसर मुझे कम मिले
और तुम करते रहे गुज़ारा फ़ाक़ाकशी पर।
--
मैने कभी छककर प्रेम नही किया
न तृप्ति भर प्रेम मुझे मिला कभी
मजदूर माँ की सूखी छाती से लिपटे शिशु की भांति
कलटता बीता मेरे प्रेम का बचपन।



(9)  टूट-फूट


आज फिर एक और गमला टूट गया...


घर बदलने के बाद से
बन्द हो गया है चिड़ियों का आना
हालांकि उनके लिए दानों के प्रलोभन
बदस्तूर जारी है


कुछ थकान रहा कुछ अनमनापन
कुछ गमले टूटफूट गए
मिट्टी अपने धूप न दिखाने की अना में रही
फूल भी खिलने कम हो गए हैं


घरवालों ने तसल्ली दी
सब हो जाएगा पहले जैसा
मेरी दृष्टि गिर कर चूर हुए
गमले पर अटकी रही


सीमेंट का गमला,
मिट्टी का मनुष्य न हुआ
यदि होता तो हर टूट इसे और दृढ़ बनाती


मैं टूटे टुकड़े बुहार कर फेंकते हुए सोच रही हूँ
हर बिखराव अनावश्यक है
दृढ़ता उपयोगी है
गमले के इस टूटन ने मुझे मेरी
कमियों से इतर सोचने की प्रेरणा दी


सुबह सुबह गमले के टूटने की घटना ने मुझे अव्यवस्थित कर दिया
अब हंसी आ रही है
ये अच्छा है कि हममें
स्वयं पर हँस सकने जितनी मूर्खतापूर्ण मासूमियत बची रहे


बहरहाल मैने अपने मोबाइल के स्क्रीन पर
सुंदर फूलों से भरा वॉलपेपर सेट कर रखा है
मैसेज टोन में चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देती है।



(10) कमतर मैं


अपने से छोटों को मैं प्रायः ये सलाह देती हूँ,
जो चाहो, सब करो।
न कर पाने की
कोई हताशा, कोई निराशा न रहे।
उम्र के इस पड़ाव पर मुझे दुख होता है
मैने जो चाहा, वो कभी कर नही पाई।
घर,दुनिया, दुनियादारी, स्वभाव, व्यवहार, संस्कार की पाठ से ओतप्रोत मस्तिष्क
घिरा रहा संकोच की दीवारों में।
इच्छाओं, उत्सुकताओं का गला मन मे ही घोंटा मैने।


मुझे पछतावा है मेरे कमतर प्रयासों का
मुझे क्षोभ है
स्वयं पर लगाये अंकुशों का।
मैने खुल कर कभी प्रेम नही किया
प्रेम किया तो स्वीकार नही कर पाई।


घृणा भी छुप छुपाकर किया मैने।
जिसे दिखाना चाहा उसकी मक्कारी का दर्पण
उसकी बातों के उत्तर मुस्कुरा कर दिए।
उसे जीभर कोस भी नही पाई
भला बुरा भी नही कहा कभी
जिसे चीख कर गालियां देना चाहती रही



संपर्क :
राखी सिंह
मो. - 8340510683
ईमेल - iamonlyrakhi@gmail.com