विकास के रास्ते
जब पगडंडियाँ
कोलतार पीती थीं
कहते थे
विकास के रास्ते
खुले हैं
अब
कोलतार
पगडंडियों को
निगल चुकी है
कहते हैं
विनाश की बारी है
1 टिप्पणी:
वीना श्रीवास्तव
ने कहा…
सटीक व्यंग..बहुत अच्छा लिखा है
http://veenakesur.blogspot.com/
19 सितंबर 2010 को 2:42 pm बजे
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1 टिप्पणी:
सटीक व्यंग..बहुत अच्छा लिखा है
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