विकास के रास्ते

जब पगडंडियाँ
कोलतार पीती थीं
कहते थे
विकास के रास्ते
खुले हैं

अब
कोलतार
पगडंडियों को
निगल चुकी है
कहते हैं
विनाश की बारी है

1 टिप्पणी:

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सटीक व्यंग..बहुत अच्छा लिखा है

http://veenakesur.blogspot.com/