लोकराग का लोकार्पण

दिनांक 29.09.2016 दोपहर 2 बजे। टेक्नो हेराल्ड, महाराजा कामेश्वर काम्प्लेक्स, फ्रेजर रोड, पटना में कवि प्रभात सरसिज की बहुप्रतीक्षित कविता संग्रह 'लोकराग' का लोकार्पण होना था। रचनाकारों एवं पाठकों से भरा सभागार। मंच संचालन प्रसिद्ध रंगकर्मी अनीश अंकुर कर रहे थे। शुरुआत कवि के अनन्य मित्र ज्योतींद्र मिश्र के गीत से हुआ जो जनकवि प्रभात सरसिज को समर्पित था। बीज वक्तव्य कवि डॉ श्रीराम तिवारी के द्वारा दिया गया। उन्होंने बताया कि 66 वर्ष की उम्र में कवि की यह पहली कृति है। आज उनका जन्मदिन भी है। उन्होंने कहा कि 'लोकराग' कविता में मानसिक अपंगता का अंत है। उनका कहना था कि कविता आभासी दुनिया की चकाचौंध से अलग ले जाने की विधा है। मुक्तिबोध की तरह ही कवि में भीतर–बाहर की आवाजाही है। डॉ रामवचन राय ने कहा कि प्रभात सरसिज अक्सर चुप रहते हैं तथा संयमित हैं। उनकी कविताओं में बड़बोलापन नहीं है तथा सही वक्त पर आवाज प्रकट होती है। अपने संग्रह में भी इन्होंने अपने वक्तव्य से संकोच किया है तथा सबकुछ कविताओं पर छोड़ दिया है। इनकी कविताएं स्मृतिगन्धा हैं। कवि शब्दों के मितव्ययी हैं और अच्छी कविता की यही पहचान भी है। कविताओं में सामयिकता भी है तो शाश्वतता भी। 'कवि जगपति' शीर्षक कविता इसका सफल उदाहरण है। साफ–सुथरी एवं मँजी हुई भाषा का प्रयोग संग्रह में हुआ है। प्रसिद्ध साहित्यकार हृषिकेश सुलभ ने कहा कि यह संग्रह रचनाकार की कविताओं के साथ लंबी यात्रा का परिणाम है तथा इसमें भविष्य के संकेत भी छुपे हैं। सोनझुरी आदि कविताएं ऐसी ही रचना है। प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ शिवानंद तिवारी ने कहा कि कविता के बारे में कुछ कहना मेरी अनाधिकार चेष्टा होगी। यह सशक्त एवं ताकतवर माध्यम है। रघुवीर सहाय के साथ रहना हुआ। अशोक सेकसरिया जी के प्रभाव से साहित्य के प्रति लगाव बढ़ा। मुझे 'पहाड़' शीर्षक कविताएं अच्छी लगी। युवा कवि प्रत्यूष चंद्र मिश्र का कहना था कि संग्रह में आम आदमी की संवेदना व्यक्त हुई है। उन्होंने संग्रह की कविता 'नातेदार शब्द' का पाठ किया। कथाकार शेखर ने कहा कि कविता–लेखन एक सचेतन क्रिया है। संग्रह में लड़ते हुए आदमी का संघर्ष व्यक्त हुआ है। अध्यक्ष खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि  कवि संभावनाशील हैं तथा उनकी कविताओं में यह दिखता भी है। मध्यवर्गीय चेतना मनुष्यता को ऊपर उठाती है तो कभी दिशा भी भटक जाती है। संग्रह की कविताओं में मनुष्यता प्रच्छन्न रूप से आई है। कविताओं की भाषा आमफहम नहीं है पर समग्रता से है। समकालीन कविताएं हैं जिसमें चिंतन भी है तो गद्य भी। कवि घटनाओं एवं परिवेश पर कड़ी नजर रखते हैं। कुछ कविताओं में प्रौढ़ता भी नजर आती है। कवि प्रभात सरसिज ने अपनी रचना–प्रक्रिया पर बात रखी। लोकार्पण में कवि विमल कुमार, कथाकार संतोष दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत, चित्रकार अवधेश अमन सहित अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही। अंत में धन्यवाद ज्ञापन समीक्षक अरुण नारायण द्वारा किया गया।

प्रभात सरसिज जैसे सहृदय कवि की पहली रचना–संग्रह के लोकार्पण में उत्साह दिख रहा था। बस एक कमी लोकार्पण के समय दिखी। बिहार के प्रतिनिधि कवि मंच पर मौजूद नहीं दिखे। यह अपेक्षित था कि कविता संग्रह के लोकार्पण में वे लोग आएं। हो सकता है व्यक्तिगत कारणों से न आ पाए हों। कुल मिलाकर  लोकार्पण सार्थक रहा। कवि को बहुत–बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ! 

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