अपना शहर

मेन रोड पर
दिखती नहीं अब
चाय की दुकानें
दोस्तों के ठहाके
अखबार पढतीं
अलसाई आँखें

मूक और शिष्ट-से
खङे हैं कतारों में
जगमगाते रेस्तरां
मॉल और मल्टीप्लेक्स

कहाँ बचा है जीवन ?
कहाँ गए वे लोग ?
पूछने पर वह भौंचक 
आँख फाड़े..!
शायद नया है शहर में
या है कोई अपना ही
जिसे मैं ढूंढ रहा इस घड़ी
बेचैन..!

अगले ही पल

बेज़वाब..!
वह तेजी से आती
सिटी बस में लटक लेता है
और मैं भी,
गुम होता जा रहा हूँ
कहीं...

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