उस पार

भाई..!
हम सड़क के इस ओर हैं
उस पार बाजार है

इस ओर हमारे खेत,
हमारे फावड़े हैं
और हम लाचार हैं
उस पार उनकी गाड़ियां,
उनकी मंडियां हैं
और वे होशियार हैं

इधर सिसकते नहर,
हमारा सूखा है
उधर छलकते तरण-ताल,
उनकी बरसात है

जरा तुम सोचो...
मंडियां इस पार भला आएंगी?
नहरें भला खुद ही मुस्कुराएंगी?
सूखा अब फंदा बन बढता आये
बचे-खुचे सपनों का दम घुटता जाए
इससे पहले कि अपनी बारी आ जाए
चलो अभी
उस पार को कूच कर जायें




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