वजूद

उन लम्हों में
सीखा था उसने
अपने अंदर जमते
मौन के छंद को
अंदर ही ज़ज्ब रखना

चाहा तो उसने भी था
कि कोई सुने
उस छंद को
चल पड़े जिंदगी
ठहर-सी गई है जो
बिना देखे
एक हमदर्द मुस्कान

अब उसने
उधड़ते दर्द को सीना
सीख लिया है
लेकिन इस नियति को
स्वीकारा भी तो नहीं

उसने भी सोचा था
सब अनुकूल हो
पर यह तो...
दुनियावी शोर में
अपने को
फिर से खो देना था

आज उसे
इस जीवन में उभरी
रिक्तता को
फिर से भरना है
अपने वजूद को
संपूर्णता में
पा लेना है

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