शहर के कोलाहल से दूर
एकांत वृद्धाश्रम में
माँ की साँसों के धागे उलझ रहे
गोता लगाने को तैयार
उम्मीद की कोई किरण नहीं
पर आँखें दरवाजे पर जमीं
शायद अभी भी है इंतजार
किसी चिंतित, परेशान चेहरे की
एकांत वृद्धाश्रम में
माँ की साँसों के धागे उलझ रहे
गोता लगाने को तैयार
उम्मीद की कोई किरण नहीं
पर आँखें दरवाजे पर जमीं
शायद अभी भी है इंतजार
किसी चिंतित, परेशान चेहरे की
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