तुम्हारा शहर
घर से निकला आदमी
देहरी के बाहर
पाँव रखते ही
खो जाता हो
भीड़ में
गाड़ियों में
आगे निकलने की
सोची-समझी होड़ हो
घरों की नालियां
बाहर निकल
मिल जाती हों
बड़े नाले में
बनने को नहर
क्या तुम्हारा शहर भी
कुछ ऐसा ही है
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