मेरा यार मरजिया : अनिल अविश्रांत



डॉ. अनिल अविश्रांत शिक्षण एवं लेखन से अपनी पाठकीयता को अलग बचाये रखते हैं। वे निश्चय ही एक गंभीर पाठक हैं। अमित ओलहाण के पहले उपन्यास 'मेरा यार मरजिया' ने इनका ध्यान आकृष्ट किया और उन्होंने इसे पूरा समय दिया। दिल के करीब इस रचना ने उन्हें लिखने पर मजबूर किया। आइये 'पाठकनामा' के अंतर्गत पढ़ते हैं उनकी अनुभूति...जिसके कारण यह रचना उनके करीब आ सकी।



प्रेम की तलाश, प्राप्ति और परिवेश की हिंसक साजिशों का आख्यान
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देर रात तक अमित ओहलाण का उपन्यास 'मेरा यार मरजिया' पढ़ता रहा। शायद दो-ढ़ाई बजे तक। फिर भी कुछ पृष्ठ बचे रह गये जिन्हें अगली सुबह पढ़ने के लिए छोड़ दिया था। किताब बंद कर सिरहाने रख ली, लाइट ऑफ की और आँखें सायास बंद कर ली पर नींद तो कोसों दूर थी। मन कीकर की उस झाड़ पर उलझा हुआ था जो इस उपन्यास की कथाभूमि का सबसे बड़ा प्रतीक बन एकाकी खड़ा है। अगली सुबह फिर पढ़ने बैठा और अन्तत: उन पंक्तियों तक पहुँच गया जो इसकी अंतिम पंक्तियां हैं―

"तुम्हें क्या करना है? किससे प्रेम करना है? कौन तुम्हारे प्रेम में है? तुम्हें कहां पहुँचना है? कहाँ मरना है? – ये तुम ही जानते हो। यात्रा के बाद एक हद तक तो जान ही गए होगे – तुम्हें क्या करना है? ...है ना मेरे भटकते दोस्त! क्या तुम नहीं जानते?

―क्या मैं जानता हूँ?

इन सवालों के साथ अमित ओहलाण ने मुझे अकेला छोड़ दिया है। उपन्यास पूरा करने के बाद बेचैनी थोड़ी और बढ़ गई है और इन शब्दों को लिखते हुए मैं पुन: इस पूरी हो चुकी यात्रा को दुहरा रहा हूँ, पर इस बार यह यात्रा से अधिक अन्तर्यात्रा है। इसमें अनेक पड़ाव आये हैं जहाँ रुककर खुद को कहानी का हिस्सा बनते महसूस किया है पर ये पंक्तियां तो पूरे उपन्यास का केन्द्र-बिंदु है –

"रोटी के लिए खेत में जो श्रम किया जाता है–उसके बिना हम भूखे मर जाएँगें। प्रेम के लिए जो श्रम किया जाता है–उसके बिना हम जीवित ही नहीं रह सकते।"

दरअसल यह किस्सा एक बेनाम किरदार के प्रेम की तलाश का है जिसे गाँव में सक्रिय एक 'विशेष विभाग' (खाप पंचायत) द्वारा 'ब्याह लायक नहीं' घोषित कर दिया गया है लेकिन वह इस निर्णय को अस्वीकार कर देता है और वह एक लड़की (गलत तरीके से ही सही, हालांकि यह गलत तरीका वह स्वेच्छा से नहीं अपनाता है बल्कि उसे बाध्य किया गया है) पा भी लेता है। दरअसल वह एक दलाल के माध्यम से पूरब की एक गरीब लड़की खरीद लेता है। उसका यह निर्णय उसे आत्म-धिक्कार तक ले जाता है पर जैसे-जैसे दोनों के बीच प्रेम की कोंपले फूटती हैं, वह पूरी तरह जीवन के राग पर नये संगीत को रचता है। लेकिन वह जिस परिवेश में रहता है उसे यह भी मंजूर नहीं। प्रेम वहाँ लगभग वर्जित विषय है और इसकी सजा मृत्यु है। कन्या भ्रूण हत्या और ऑनर किलिंग इसकी पहचान है और नैरेटर भी इसका शिकार होता है। पूरब से आई लड़की पूरे समाज के लिए चुनौती है। वह नस्ल को खराब कर देगी। वह समाज के सम्मान के लिए सबसे बड़ा खतरा है और अन्तत: पंचायत के सयाने उसके जीवन में आये प्रेम से उसे वंचित कर देते हैं जिसके प्रतिशोध में प्रेम से लबालब भरा वह व्यक्ति अन्तत: हत्यारा बन जाता है। प्रेम का निषेध करने वाला समाज अन्तत: एक क्रूर और हिंसक समाज में बदल जाता है।

यह प्रेमविहीन समय में मनुष्यता की हार की त्रासद गाथा है। अमित ओहलाण जी को इस पहली रचना के लिए हार्दिक बधाई ! उन्होंने एक सम्मोहनकारी भाषा और अद्भुत शिल्प में यह कृति गढ़ी है जो इस रचना में आई पवित्र और नन्हीं रूह-सी हमारी चेतना का हिस्सा बन जाती है।

कृति–मेरा यार मरजिया
लेखक–अमित ओहलाण
आधार प्रकाशन, पंचकुला, हरियाणा

संपर्क :
डा. अनिल अविश्रांत 
हिंदी विभाग 
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हमीरपुर
ईमेल - avishraant@gmail.com

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