कुमार श्याम राजस्थान के युवा साहित्यप्रेमी हैं। साहित्य पढ़ने के क्रम में उनकी टिप्पणियां उनके गंभीर पाठक होने का परिचय देती हैं। इसी क्रम में उन्होंने राजस्थानी में कहानी लिखनी भी शुरू कर दी है तथा उनकी ग़ज़लें भी पढ़ी जाती रही हैं। पर यहाँ बातें होंगी उनकी पाठकीयता की...उन्होंने प्रसिद्ध कथाकार उदय प्रकाश की कहानी 'मोहनदास' को अपने करीब समझा...कहिये कि अपनी ही कहानी समझा और लेखनी को रोक नहीं पाये। बहुत ही भावपूर्ण एवं संतुलित टिप्पणी उनके द्वारा भेजी गयी है। ऐसे पाठकों का होना हिंदी साहित्य के भविष्य का होना है। तो आइये 'पाठकनामा' में मिलते हैं कुमार श्याम से..!
संघर्ष और जिजीविषा का मार्मिक आख्यान – मोहनदास
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अपने जीवन में हमें कुछ ऐसी विशिष्ट रचनाएं पढ़ने को मिलती हैं, जिनकी छाप ज़ेहन में अरसे तक बरक़रार रहती है। मुझे शुरू से ही पुस्तकों से बेहद लगाव रहा है। इसी सिलसिले में अग्रज कवि व राजस्थानी के वरिष्ठ कथाकार डॉ. सत्यनारायण सोनी जी से हिन्दी के बहुचर्चित गद्यकार उदयप्रकाश की कहानी ‘मोहनदास’ प्राप्त हुई।
उदयप्रकाश की यह रचना मेरे बहुत क़रीब है। यूं कहें कि यह कहानी हर मध्यमवर्गीय युवक की कारूणिक-कथा है, जो सत्ता के मायाजाल में असहाय है। उदयप्रकाश की बहुत बड़ी विशेषता रही है कि वो हर नई रचना के साथ एक नये उदयप्रकाश के रूप में प्रकट होते हैं। अपने कथ्य और शिल्प से बाहर निकल नये कथ्य और शिल्प का अन्वेषण कर जो साहित्य-रचना है, वही सच्चा और नया साहित्य है। यह रचना भी उदय प्रकाश की इसी विशेषता का एक नायाब उदाहरण है। किसी रचना को पढ़ते हुए पाठक का बार-बार ठिठक जाना, सोचने, समझने और आंसू बहाने के लिए विवश हो जाना कोई स्वाभाविक-क्रिया नहीं है, बल्कि यह रचनाकार की अकूत शक्ति है। इसी विलक्षण शक्ति का एहसास होता है महाकाव्यात्मक-कथा ‘मोहनदास’ को पढ़ते हुए। उदयप्रकाश की क़लम की धार इतनी पैनी और प्रभावशाली है कि उन्होंने इस कहानी के माध्यम से भ्रष्ट अर्थतंत्र की बख़िया उधेड़कर रख दी। ‘मोहनदास’ के रूप में समाज की सबसे भयावह और त्रासद परिस्थितियों को साहस और निर्भीकता के साथ कलमबद्ध कर सामाजिक अन्याय एवं शोषण का यथार्थ प्रस्तुत किया है।
यह कहानी हर उस ‘मोहनदास’ की कहानी है जो योग्य होते हुए भी समाज और सरकार के भ्रष्ट-स्वभाव का शिकार हो जाता है और निरन्तर निरकुंश सामाजिक परिस्थितियों के मायाजाल में फंसकर छटपटाता हुआ अंतत: दम तोड़ देता है। अपनी योग्यता के बल पर पहचान बनाने के क्रम में अर्थतंत्र के उपेक्षित रवैये से अंत तक अपनी पहचान अस्वीकार करने के लिए हलफनामा देने को विवश हो जाता है। यह भारत के हर उस नवयुवक की संघर्ष एवं जिजीविषा का सर्वाधिक मार्मिक आख्यान है जो समाज के सबसे क्रुर चेहरे से आवरण भी हटाता है और उससे सावधान रहने के लिए राह भी प्रशस्त करता है। कहते हैं कि साहित्यकार भविष्यद्रष्टा होता है, निश्चित ही...क्योंकि यह कृति बहुत पहले लिखी गई है। लेकिन देश की तस्वीर ठीक वैसी ही है जिसके लिए उदयप्रकाश सावधान रहने के लिए आगाह करते हैं।
यह किताब मेरी सबसे चहेती एवं सबसे क़रीब है, क्योंकि इस कहानी को पढ़ते हुए पाठक पात्र मोहनदास में मुक़म्मल रूप से ख़ुद को देखता है। ऐसी दुर्लभ कृति हर युवा को पढ़नी चाहिए जो कई पर्दे हटाती है और यथार्थ से मुख़ातिब करवाती है।
संपर्क :
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कुमार श्याम
ग्राम – बरमसर
ग्राम – बरमसर
तहसील – रावतसर
जिला – हनुमानगढ़ (राजस्थान)
पिन – 335524
मोबाइल – 9057324201
ईमेल – kumarshyam0605@gmail.com
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