बिहार के किसी गांव में
एक औरत
गोबर पाथ रही है
लोईया बनाके ठोकती है भीत पे
और वहाँ...
दिल्ली के सभागार में
उसकी कहानी पर
तालियां बज रही है
छप्पर के नीचे
पसीने से तर-बतर
वह औरत
गोयठा सुलगा रही है
और वहाँ...
दिल्ली के सभागार में
एक असूर्यम्पश्या सुंदरी
चूल्हे के ठौर से उठती
सोंधेपन पर
कविता बाँच रही है
न उस सुंदरी के शब्द
सजीव हो पाते हैं
न वह गंवई औरत
उसके शब्दों की तरह..!
एक औरत
गोबर पाथ रही है
लोईया बनाके ठोकती है भीत पे
और वहाँ...
दिल्ली के सभागार में
उसकी कहानी पर
तालियां बज रही है
छप्पर के नीचे
पसीने से तर-बतर
वह औरत
गोयठा सुलगा रही है
और वहाँ...
दिल्ली के सभागार में
एक असूर्यम्पश्या सुंदरी
चूल्हे के ठौर से उठती
सोंधेपन पर
कविता बाँच रही है
न उस सुंदरी के शब्द
सजीव हो पाते हैं
न वह गंवई औरत
उसके शब्दों की तरह..!
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