प्रेमिका या माँ

तुम मिली इन गर्मियों में
सड़क पर छतरी लिए
धूल और पसीने पोंछती
कुछ परेशान-सी
इंतजार करती

मुझे याद आ गये वे दिन
ढूंढने लगा वह मुस्कान
तुमने बाँहें फैलाई
एक लम्हा जुड़ गया फिर से
तुम प्रेमिका ही तो थी

सहसा तुम खिलखिला पड़ी
एक किलकारी गूँजी थी

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