भूख

उनकी भूख बढ गई है
पंजे और भी तेज हुए हैं
दाँते और नुकीली
आँखों की चमक
गहरी हो गई है

हल्के पदचाप
कान खङे
लार टपकाते

हवाओं में
शिकार की
गंध के पीछे
बढते आ रहे हैं वे 

संकल्प

प्रिय,
तुम्हारी अनुगामिनी
अब नहीं चलेगी
पद-चिह्नों पर तेरे
फिसलन है

कैसे संभालोगे
गिरुंगी जब
तुम्हारी तरह

तुम तो बचा ही लोगे
अपना पुरुषत्व
उठेंगे सवाल हमीं पे
इस बार भी