दुःख की शुरुआत

मुझे वहीं जाना होगा 
जहाँ अपनों को छोड़ा था


जिन्हें अपना समझा
वे जा रहे हैं 
सुख को जीने 
मुझे छोड़कर


परंपरा जो बन चुकी है 
उससे पता नहीं
कितनों के सुख बटेंगे
इतना तय है 
दुःख कभी न बाँटे जाएँगे।