विकास के रास्ते

जब पगडंडियाँ
कोलतार पीती थीं
कहते थे
विकास के रास्ते
खुले हैं

अब
कोलतार
पगडंडियों को
निगल चुकी है
कहते हैं
विनाश की बारी है