बीहड़

इन दिनों...
मेरे अंदर भी
एक बीहड़ पल रहा है
घुप्प अंधेरा

घुस सको तो आ जाओ
कीचड़ सनी झाड़ियों के पार
पेड़ों के झुरमुटों में
चहचहाती चिड़ियों के पास

कल-कल करती नदियां मिलेंगी
हरे-भरे पहाड़ भी
प्यार और उसकी स्मृतियाँ
सभी मिलेंगी

पर आना होगा तुम्हें
उन्हीं रास्तों से
जिन्हें मैंने खोल रखा है
तुम्हारे खातिर

भ्रम

मौसम बदला
कोंपलें फूटीं
पत्ते गिरे
पुराने..!

कुछ पीले
कुछ हरे
कुछ समय पर
कुछ पहले भी !

कुछ जर्जर
हैं जमे...
अमरबेल के
आलिंगन में