विकास के रास्ते

जब पगडंडियाँ
कोलतार पीती थीं
कहते थे
विकास के रास्ते
खुले हैं

अब
कोलतार
पगडंडियों को
निगल चुकी है
कहते हैं
विनाश की बारी है

सड़क पर: कुछ दृश्य

 नो एंट्री में 
घुसने से रोकती
ट्रैफिक पुलिस
मुट्ठी बंद होते ही
बन जाता था रास्ता

नेताजी चले
गांधीगिरी दिखाने
पीछे अंगरक्षक
सशस्त्र !

नो पार्किंग जोन में
खडी थी कार
पीछे लिखा था
भारत सरकार

मंडी में
सब्जियों की उगाही करती
पुलिस !!!
औरों के लिये
गैरकानूनी..!

प्रतिदान

घोड़े सरपट दौड़ते हैं
और तेज..!  
गिरते हैं, उठते हैं
दूसरों को पछाड़
कुछ गंतव्य तक पहुंचते हैं
प्रशिक्षित करके अंत में
गदहों की सेवा में
लगाए जाते हैं

उनमें से कुछ..!
उत्तम सेवा की बदौलत
पुरस्कृत होते हैं
उपरांत..!
उनकी मादाएं
खच्चरों को जन्म देती हैं

शंकित मन

उनके तिरुपति और अजमेर की
त्वरित यात्राओं को देखकर     
होने लगा है विश्वास  
...कि वहीं मिलते होंगे  आज्ञापत्र
हत्या, अपहरण और घोटालों के
तभी तो
हर आरोपमुक्ति के बाद
पुर्नदर्शनार्थ जाते हैं

...कि काले धन के चढ़ावों के बदले
होते होंगे नवीनीकरण
उन आज्ञापत्रों  के
तभी  तो
उनकी वापसी पर
लोग और आशंकित होते हैं  

नई पहचान

कितने लोग
गोलियों से मारे गए
कितने हवाई हमलों से
कोई हिसाब नहीं
हमलावर ही गिन रहे हैं
हर नए हमलों के साथ
एक जनसमूह ख़त्म
जो ढूंढ रहा था
किसी खंडहर में आश्रय
चूल्हे सुलगा रहीं औरतें
जन्म दिन मना रहे बच्चे
निशाने बनते
हमलावरों के
और गिने जाते
आतंकियों में
मरने के बाद

स्कूल में

स्कूल में
स्वेटर बुनती हुई
शिक्षिका कह रही थी-
परिश्रम
सच्चे मन से होनी चाहिए

सह शिक्षक
बैठे
उंघ रहे थे