मीडिया में महिलाओं की बढ़ती भूमिका : रामशरण जोशी



हिंदी के प्रसिद्ध पत्रकार श्री रामशरण जोशी पिछले दिनों पटना में थे। जे डी वीमेंस कॉलेज, पटना के हिंदी विभाग की पहल पर आयोजित कार्यक्रम में ‘मीडिया में महिलाओं की भूमिका’ विषय पर उनका एकल व्याख्यान था। पत्रकारिता की छात्राओं को संबोधित करते हुए उन्होंने क्या कहा... पढ़िए अरुण नारायण की रपट।

आज के चैनल जर्नलिज्म में महिलाओं की भूमिका बढ़ी है। बरखा दत्त, तेजस्वी सिंह मशहूर ऐंकर हैं जो पुरुषों से ज्यादा प्रभावशाली हैं। साईबर और सोशल मीडिया में आजकल सबसे ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं। हमारे जमाने में पत्रकारिता इतनी स्किल्ड नहीं थी । किसी ने पढ़ाया-लिखाया नहीं, अपने आप सीखा। सही भी सीखा, गलत भी सीखा। आप अगर फॉर्मल एजुकेशन प्राप्त करती हैं तो इस क्षेत्र में आपको अवसर भी प्राप्त होंगे। निराश होने की जरूरत नहीं है। हां, आपको मल्टी टास्किंग मीडिया प्रोफेशनल होना होगा। आप में अच्छे संपादन, इंटरव्यूर, ऑनलाइन, एडिटिंग, कैमरा चलाने, लेआउट और प्रूफ रीडिंग की दक्षता होनी चाहिए। इसके साथ ही कम से कम आपको अंग्रेजी और हिन्दी इन दो भाषाओें में दक्षता होनी चाहिए, इसके बगैर आप अच्छा पत्रकार नहीं बन सकतीं। आपसे अपेक्षा की जाती है कि इतिहास, राजनीति शास्त्र और समाज के बारे में भी आपका पर्याप्त अध्ययन हो।

ये बातें हिन्दी के मशहूर पत्रकार श्री रामशरण जोशी ने जेडी वीमेंस कॉलेज, पटना के विज्ञान भवन में पत्रकारिता की छात्राओं को संबोधित करते हुए कही। कॉलेज के हिन्दी विभाग की पहल पर आयोजित इस कार्यक्रम का विषय था - मीडिया में महिलाओं की भूमिका।कार्यक्रम में रेखा मिश्रा, शंभू पी सिंह आदि ने भी संबोधित किया। उषा सिंह ने कार्यक्रम का संचालन किया और छाया सिन्हा ने बहुत ही सधे हुए अंदाज में धन्यवाद ज्ञापन किया। इस मौके पर छात्राओं ने जोशी जी से पत्रकारिता से संदर्भित बहुत सारे सवाल किए जिनकी सारगर्भित व्याख्या उन्होंने की। कहा कि आप जैसे युवाओं से मिलकर एक ताजगी महसूस होती है, उर्जा प्राप्त होती है। आनेवाला समय आप ही लोगों का है। आज पटना से दिल्ली तक में स्नातक और एम.ए तक का मास मीडिया का कोर्स पढ़ाया जा रहा है। मीडिया को पहले प्रेस कहा करते थे। प्रेस की जगह मीडिया आ गया। यह राज्य का चौथा स्तंभ है। उन्होंने छात्राओं से सवाल किए कि एक राज्य के चार स्तंभ कौन-कौन से हैं, जिनसे राष्ट्र बनता है, लोकतंत्र बनता है। छात्राएं पहले मौन रहीं, पिन ड्रॉप साइलेंस ! जोशी जी ने पुनः सवाल किए तो धीरे-धीरे जवाब भी आये कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और प्रेस। जोशीजी ने कहा कि इन्हीं चार स्तंभों के आधार पर आधुनिक लोकतंत्र टिका हुआ है। लोकतंत्र अस्तित्व में आया तो माना गया कि बोलने की आजादी होगी। लेकिन आज हम देख रहे हैं कि बोलने की आजादी की कीमत लोगों की हत्या के रूप में प्रकट हो रही है।

श्री रामशरण जोशी ने कहा कि दुनिया भर में जितनी भी क्रांतियां या परिवर्तन हुए हैं प्रेस ने वहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रूसी और चीनी क्रांति में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।  19वीं और 20वीं सदी का दौर इस तरह के ढेर सारे घटना प्रसंगों से भरा हुआ है। अपने यहां 1857 की क्रांति में उर्दू, फारसी, बांग्ला और हिन्दी के ढेर सारे अखबारों ने बड़ी भूमिका निभाई। तिलक, आंबेडकर, भगत सिंह, नेहरू-सब का अपना-अपना अखबार था। गांधीजी ने नवजीवन, हरिजन, यंग इंडिया और अफ्रिका में इंडियन ओपिनियननिकाला। उसके माध्यम से प्रवासी भारतीयों को संगठित किया। उनमें चेतना पैदा की। आंबेडकर ने मूक नायकनिकाला। नेहरू ने नेशनल हेराल्ड। जितने भी परिवर्तन आये हैं उसमें अखबारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 1790 में हिक्की गजटनिकला जो भारत का पहला पत्र था। हिक्की ईस्ट इंडिया कंपनी का मुलाजिम था। उसने अपने यहां ही देखी थी भ्रष्टाचार और कई तरह की विसंगतियां। वो एक सच्चाई को, सामाजिक कुरीति को सामने लाना चाहता था, जिसमें वह सफल रहा। बाद में जातिप्रथा, सतीप्रथा आदि कुरीति के खिलाफ राजाराम मोहन राय ने काम किया। उन्होंने चार भाषाओं में अखबार निकाले। 20वीं सदी में इसी बिहार के चंपारण से आरंभ हुए निलहों के खिलाफ आंदोलन में गांधी के संदेश को दुनिया भर के अखबारों ने फैलाया। आजादी के बाद अखबारों की भूमिका और बढ़ी। आज हम 2018 में हैं। 1967 में जब मैंने पत्रकारिता आरंभ की थी तो अपने यहां कोई चैनल नहीं थे। उस समय रेडियो और अखबार के माध्यम से खबरें आती थीं। हम लोग टाईपराइटर से खबरें लिखा करते थे। दो-तीन घंटे ट्रंक कॉल के लिए इंतजार करना पड़ता था। चार तरह के ट्रंक कॉल होते थे। आज की तरह तब इलेक्ट्रिानिक जिन्न नहीं आये थे।

जोशी जी ने बिहार का अनुभव साझा किया। कहा कि 1970 में मैं बिहार आया था जब यहां भूमि हथियाओ आंदोलन चल रहा था। पूर्णिया, कहिटार में यह सब हो रहा था। उस समय के सोशलिस्ट नेता कर्पूरी ठाकुर, मधु लिमये आदि इसका नेतृत्व कर रहे थे। बांग्लादेशी बार में मैं गया, ढाका पहुंचा। उस समय महिला पत्रकार व महिला पत्रिकाएं नहीं के बराबर थीं। अंग्रेजी अखबारों में इलेस्ट्रेटेड विकली ऑफ़ इंडिया, सर्चलाईट आदि का जमाना था वह। बिहार से हिन्दी दैनिक आर्यावर्त निकलती थी। छोटे शहरों में महिला रिपोर्टर नहीं के बराबर थीं। हां, वे सॉफ्ट जर्नलिज्म में थीं। पारिवारिक पत्रिका सारिका, वनिता और स्वास्थ्य संबंधी क्षेत्रों की पत्रकारिता में उनकी भूमिका थी। हार्ड जर्नलिज्म में उनकी भूमिका नगण्य थी। उस समय अंग्रेजी में अच्छी सैलरी मिलती थी। उस दौर की महिलाएं डॉक्टर, शिक्षिका, एकेडमिक्स, और राजनीति में पत्रकारिता की अपेक्षा ज्यादा जाना पसंद करती थीं। धीरे-धीरे परिवर्तन आता गया और सूचना क्रांति के इस दौर में महिलाएं अच्छी संख्या में इस क्षेत्र में आयीं। लेकिन यह दुखद है कि मृणाल पांडेय, शीला शर्मा आदि महिला संपादकों को छोड़कर हिन्दी में एक भी महिला संपादक नहीं हुईं हैं। तब इतनी मोबिलिटी महिलाओं के लिए नहीं थी।

उन्होंने माना कि 20वीं सदी के अंत में इलेक्ट्रानिक जर्नलिज्म की शुरूआत हुई। इंदिरा गांधी ने महसूस किया कि कलर टीवी होने चाहिए। इसके बाद यह काम बढ़ा और बीसवीं सदी के अंतिम दशक में इलेक्ट्रानिक चैनलों की बूम आ गई। इसमें महिलाओं का प्रवेश तेजी से हुआ। इस माध्यम में मेन पावर की जरूरत थी-ऐंकरिंग, कैमरा हैंडिल करना। इसलिए आप देखेंगे कि उनकी संख्या में इजाफा हुआ। उन्होंने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता की जो यात्रा है उसके तीन मुख्य पड़ाव रहे हैं। उसका पहला पड़ाव मिशनरी पत्रकारिता का है जिसमें बहुत लोगों ने आजादी हासिल करने के लिए अपनी कुर्बानी दी। उसका दूसरा पड़ाव प्रोफेशनलिज्म का है, व्यावसायिकता बुरी बात नहीं है लेकिन इसका जो तीसरा पड़ाव है वह व्यापारीकरण अर्थात धंधाकरण का है, जिसने इसकी पूरी मर्यादा को छिन्न-भिन्न सा कर दिया है।

डी.डी. बिहार के कार्यक्रम अधिशासी शंभू पी सिंह ने दूरदर्शन के अपने अनुभव साझा किए और बतलाया कि किस तरह से इलेक्ट्रानिक मीडिया ने प्रिेट मीडिया के बरक्स अपनी एक जनपक्षरता कायम की। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया ने मीडिया के दोनों माध्यम को जनपक्षर बनाया है।

इन पंक्तियों के लेखक ने बिहार में पत्रकारिता की जमीन, उसके विकासक्रम और यहां से महिला पत्रकारिता की प्रवृतियों के मुतालिक भी कुछ बातें कहीं।












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अरुण नारायण 
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