तर्पण

रसोई  में
आलू-प्याज के साथ
आ जाते हैं
खेत और गाँव भी
लदे-फदे...

झाँकती है उनमें से
कमेसर महतो की सूखी आँखें
झाँकता है उसका दलिद्दर
आगे देखा नही जाता
टोंटी के सामने रख देता हूँ

लगा जैसे...
उसका तर्पण कर
मुक्त हो गया हूँ



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