जब तुम विशाल सभागारों में
भाषण देते हो या
वातानुकूलित कक्ष में
सोफे में धँसकर
साक्षात्कार देते हुए कहते हो
कि नियति एक झूठ है
सब मेहनत और जज्बे से होता है
मैं भी तुम्हारे साथ
कह उठता हूं कि
सच में नियति कुछ नहीं है
एक छलावे के सिवा
मैं चाहता हूं कि
किसान फ़सल बर्बाद होने पर
यह न कहे
कि नियति में यही बदा था
भगवान की यही इच्छा थी
उसकी जगह वह कहे कि
तुम्हारी आग उगलती चिमनियों
एवं धुंआ छोड़ती मोटरगाड़ियों ने
उसकी फसल बर्बाद की
एसी से निकलती गर्म हवाओं ने
उसकी फसल समय से पहले सूखा दी
अपहृत पेड़-पौधों की रुलाई ने
कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ ला दिया
वह पेड़ों की बची टहनियों को लेकर
चढ़ दौड़े
तुम्हारे साम्राज्य पर
जमींदोज कर दे तुम्हारी चिमनियां
तोड़-ताड़ दे
गरम हवा उगलते एसी के डिब्बों को
पंचर कर दे तुम्हारी मोटरगाड़ियों के पहिये
और अंतिम चेतावनी देकर जाए कि
तुम्हें अपने हिस्से का ही
ऐश्वर्य मिले, ठंडक मिले
अपने हिस्से की गरमी भी तुम संभालो
सूखा, बाढ़-अकाल भी
मैं चाहता हूं कि
औरतें ही सिर्फ रिश्ते न संभालें
नियति के अधीन !
न ये सोचें कि
तुम मर्दों के सुख में ही
उनका सुख है
क्यों होती रहें
तुम्हारे चाहने पर नंगी
क्यों डोलती रहें
तुम्हारे इशारों पर
सजती-संवरती रहें तुम्हारे लिए
बल्कि ये कहें कि
उनके सुख में ही
तुम्हारा सुख शेष है
बलात तुम्हारी किसी भी इच्छा पर
तुम्हारा मुँह नोच ले
और न मानने पर
चुनौती दे
तुम्हारे अस्तित्व को भी
मैं चाहता हूं कि
मजदूर कभी ये न सोचे
कि उसकी रोटी
तुम्हारी कृपा पर मिलती रही है
उसका भाग्य तुम्हारे चरणों में ही
फलता है
बल्कि ये कहे कि
तुम चोर-डकैत हो जिसने
उनके पसीने पर धावा बोला हुआ है
उनके खून से ही तुम्हारा साम्राज्य
सींचा जा रहा है
वह दौड़े अपनी नियति को दुत्कार
चढ़ बैठे तुम्हारी छाती पर
और ठोंक दे अंतिम कील।
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