राखी सिंह की कविताएं



राखी सिंह की कविताओं में पीड़ा का भाव उम्मीद बनकर आता है। उनकी प्रेम-कविताओं में रचे-बसे भाव शब्दों की गत्यात्मकता के साथ आत्म में गहरे धँसती है… दुबारा आमंत्रित करती हैं। कविताएँ कहीं भी पाठकों को शब्दों के आडंबर में नहीं उलझातीं, इस कारण दिशा से भटकती नहीं हैं। उनकी कविताओं के साथ आप भी चलके देखिए।

(1) अव्यक्त अभिव्यक्ति

कुछ प्रेयसियां

अपने संकोच और अहम के केंचुल से निकलना नही चाहती
और ये भी चाहती हैं
कि प्रेयस उस खोल को भेदकर
उनकी आत्मा तक पहुंचे

प्रेम में उन्होंने स्वयं को
व्यवहारकुशल बना लिया है
मौन, मुस्कान या उदासी से
उनका थाह नही लगता
बहुत गहरी होती है
उनकी तटस्थता की खाई


वो अपने शब्द खुले नही छोड़तीं
अधूरे छूटने या के बतंगड़ बन जाने की अभ्यस्त हो चुकी
उनकी बातें,
कई परतों में लिपटी होती हैं


कॉल करूँ क्या -
प्रेयस के निवेदन पर जब प्रेयसी सपाट भाव से कहती है -
नहीं !
'नहीं’ ओट है
उसका, जो उसने कहा है -
पूछ कर करोगे ?


(2) आत्ममुग्ध


फूल जो सबसे सुंदर हो
मै उसे नही तोड़ती


अपनी लिखी सबसे निकटतम चिट्ठी
कभी नही डाली डाक में
अब तक की अपनी सबसे प्रिय कविता
नही पढ़ाया किसी को


मेरे आँसू किसी से नही देखे
मेरे अपने चुने हुए एकांत हैं
वो कोने, जिनके कंधे पर सर रख कर रोई हूँ
उन्हें भी नही बताया रोने का कारण


मेरी अपनी खींची अदृश्य लकीरें हैं
मेरे भीतर की बारिशें
केवल मेरी हैं
मैं नही पूछूँगी तुमसे
तुम कितने और कब से यूँ सूखे हो


जाने क्या-क्या जमा कर रखा है
ये भी कि याद बहुत आते हो
मगर जताऊं क्यों ?
बताना अच्छा नही लगता
मैं, तुमसे ही छुपाउंगी तुम्हारे बाबत
क्यों बताऊं ?
कि प्यार है !


मेरा कोई ऐसा संगी नही जिसके समक्ष
खोल दूं सारे पत्ते
तुम निश्चिन्त रहना !
तुम्हारा नाम मैं किसी से नही कहूंगी।

(3) प्रेम : एक नया जन्म



एक जन्म में होने वाला हर प्रेम
होता है एक नया जन्म
एक जन्म में हम लेते हैं
कई-कई जन्म


मेरा पिछला जन्म कुलांचे मार रहा
पर घुटने मजबूत दिखते नही इसके
ये अपने पैरों पर खड़ा हो पायेगा
ऐसी आशा नही मुझे


उससे पिछला जन्म प्रिय था सबसे
परन्तु किशोर वय में
मौत का ग्रास बना
अहम खाकर आत्महत्या कर ली उसने !
वो मेरे हर पुनर्जन्म में पूर्वजन्म की स्मृतियों में रहा


कुछ जन्मों का होना व्यर्थ गया
सब मरे
कुपोषित मौत !


कितने जन्म नौनिहाल ही सिधार गए
कितने जन्मों के भ्रूण हत्या का पाप है सर पर


प्रथम जन्म खाट पर पड़ा बुजुर्गवार हो चला है
कराहे भी सुनाई नही देती अब उसकी


एक जन्म में कितने जन्म जी लिए मैने
मै, एक नए जन्म की तैयारी में हूँ।


(4) अलिखित लिपि


पानी की लिपि में
लिखी थी मैने चिट्ठियां
किसी शब्दकोश की मदद से
कोई उनकी लिखावट पढ़ नही पायेगा
नही होंगी संरक्षित वो किसी पुस्तकालय में
न इतिहास के अमर प्रेमपत्रों में उनका कोई ज़िक्र होगा
वो गिरेंगी बून्द बनकर
बहेंगी नदियों की तरह
नष्ट हो कर भी
वो छोड़ जाएंगी अपनी निशानियां


(5) सशर्त प्रेम


मेरे प्रेम में पड़ने की जितनी उत्सुकता है तुममे
मुझे शंका है
मेरी स्वीकार्यता के उपरांत
तुम उतने प्रसन्न रह भी पाओगे या नहीं


मेरा प्रेम पा के क्या पाओगे तुम?


प्रेम के प्रति मेरी चिर परिचित तटस्थता विचलित करेगी तुम्हे
तुम्हारा प्रेम मुझे प्रभावित तो करेगा
पर वो प्रभाव मै सबसे छुपा लुंगी
क्या तुम नही जानते?
हर स्त्री कुशल अभिनेत्री होती है


तुम मुझपर अपना एकाधिकार चाहोगे
ये चाहना तुम्हारा अधिकार भी है
पर मेरा खिलंदड़पन तुम्हे ये जताने से रोकेगा
तुम्हारे न कहने को
मै अपनी उद्दंडता का अवसर बनाउंगी
सबके बीच मेरा चुहलपन तुम्हे खिन्न करेगा
कहो तो, करेगा कि नही?


तुम्हारी विरह मुझे पीड़ा देगी
पर स्वयं के लिए 'पीड़िता' शब्द सख़्त नापसन्द है मुझे
तुम्हारी याद में मै कलपती नही दिखूंगी
न तुम्हे, न औरों को
हाँ मै जानती हूँ,
ये बात भी खीझ भरेगी तुम में


प्रेम में महान होना
मेरी समझ से परे की बात है
मेरे लिए प्रेम स्वार्थी होने की शै है
मै तुमसे प्रेम करूंगी
तो मुझे तुम्हारा प्रेम चाहिए होगा


मेरे अनुसार
प्रेम में 'स्पेस' के लिए कोई स्पेस नही होता
लिहाजा, मुझे वक़्त-बेवक्त तुम्हे टोक सकने की स्वतंत्रता चाहिए
और मुझे अपने हर टोक की ज़वाबी कार्यवाही चाहिए


कितना बोझिल है ना ये सब?
"कोई शर्त होती नही प्यार में",
फिर भी इतनी शर्तें?
मानो प्रेम न हुआ
किसी सुपरवाइजर की ड्यूटी हो गई


तभी कहती हूँ
बात मानो मेरी,
मुझसे प्रेम न करना
तुम्हारे हित मे है।


(6) उपहार


संसार के शब्दकोश के सबसे मधुर शब्दों में शामिल है,
उपहार


मुझे गुलाब देने या लेने से अधिक रुचि
गुलाब का पौधा लगाने में है
ऐसा जाने कितनी बार,
कितने स्थानों पर कहा हो मैने
कभी किसी सामान्य बातचीत में तुमसे भी कही गई
ये बात इतनी औपचारिक रही होगी
कि मेरा कहना, मुझे स्मरण नही


तुम गुलाब भेजते, तो मुझे खीझ होती
मैसेज भेजना मेरी खिझलाहट का चरम होता
तुम्हारे फोन से मै असहज हो जाती


तुमने गुलाब का पौधा भेजा
ऐसा पहली बार हुआ था
पहली बार होना, हर बार
हरसिंगार होता है
सुगन्धित होता है
गहरा होता है
श्वास में समाते स्पर्श सा गहरा
डार्क चॉकलेट-सा गहरा
कंठ में घुल रही मिठास सा गाढ़ा


इस पौधे पर किस रंग के गुलाब उगेंगे
मैं नही जानती
पर अभी मेरी अचरज का रंग गुलाबी है
बेबी पिंक जानते हो न!
वही गुलाबी


इस उपहार के प्रतिउत्तर में तुम्हे क्या दूं?
शुक्रिया तो बिल्कुल नही!
इस मुलायम अहसास को
बोझिल करने का दुःसाहस मुझमे नही


मुस्कान भेजती हूँ
इमोजी वाले मुखौटे नही
असली मुस्कुराहट
तुम्हे अनुमति है
तुम चाहो तो आज
स्माइल डे मना लेना


इस पौधे का खिला पहला पुष्प भेजूंगी
उस दिन हम
'रोज़ डे' मनाएंगे।


(7) सर्दियां


कवि ने कहा है,
–दुनिया को
हाँथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए।
मेरा उनसे क्षमा मांगने का मन है
अभी कल ही तो मैं किसी दोस्त से कह रही थी,
संसार की हर सुंदर शै को ठंढ़ा होना चाहिए।


कवि क्या तुम
किन्ही नर्म मुलायम
ठंढी हथेलियों के
स्पर्श से अनभिज्ञ रहे?


देखो कैसी,
बर्फ़ की दो सफ़ेद सिल्लियां
बनी हुई हैं हथेलियां मेरी


दास्ताने गुमा दिए हैं मैने
सब कहते हैं,
मै जानबूझ के वस्तुओं को गुम करती हूँ।


मैं उनसे कुछ नही कहती,
गुम करना मेरा पसंदीदा शगल है।
ऐसा करके
मैं गुम हुई वस्तु को
अपनी उपलब्धता की कमी महसूस कराना चाहती हूँ।
ऊन की बुनाई में पसीने से तर-बतर दास्तानो को
मेरी ठंढी हथेलियों के स्पर्श की कमी खलती तो होगी।


मैं जताना नही चाहती
छुपा भी नही पाती
दूरी अखरती है।
कवि तुम किसी से न कहना,
मैने गर्म लिफाफे में
पश्मीने की भांति तह करके
उनतक सर्दियों का एक संदेश भेजा है,
"तुम अनुमति दो
तो इन भभकते गालों की भट्ठी में
सेंक लूं मै हथेली अपनी।"



(8) अपूर्णता


इनदिनों जबकि तुम्हारी याद आती है
कुछ कम
थोड़ा और कम
मै सोचती हूँ
दो लोग जो लंबे समय तक रह सकते थे
एक दूसरे के साथ
और एक दूसरे की यादों में
भूल भूल में
भूल जाएंगे एक दूसरे को
शीघ्र ही!
--
इतना प्यार था मेरे मन मे तुम्हारे लिए
जो मै लुटा सकती थी तुम पर उम्र भर
पर उन्हें खर्चने के अवसर मुझे कम मिले
और तुम करते रहे गुज़ारा फ़ाक़ाकशी पर।
--
मैने कभी छककर प्रेम नही किया
न तृप्ति भर प्रेम मुझे मिला कभी
मजदूर माँ की सूखी छाती से लिपटे शिशु की भांति
कलटता बीता मेरे प्रेम का बचपन।



(9)  टूट-फूट


आज फिर एक और गमला टूट गया...


घर बदलने के बाद से
बन्द हो गया है चिड़ियों का आना
हालांकि उनके लिए दानों के प्रलोभन
बदस्तूर जारी है


कुछ थकान रहा कुछ अनमनापन
कुछ गमले टूटफूट गए
मिट्टी अपने धूप न दिखाने की अना में रही
फूल भी खिलने कम हो गए हैं


घरवालों ने तसल्ली दी
सब हो जाएगा पहले जैसा
मेरी दृष्टि गिर कर चूर हुए
गमले पर अटकी रही


सीमेंट का गमला,
मिट्टी का मनुष्य न हुआ
यदि होता तो हर टूट इसे और दृढ़ बनाती


मैं टूटे टुकड़े बुहार कर फेंकते हुए सोच रही हूँ
हर बिखराव अनावश्यक है
दृढ़ता उपयोगी है
गमले के इस टूटन ने मुझे मेरी
कमियों से इतर सोचने की प्रेरणा दी


सुबह सुबह गमले के टूटने की घटना ने मुझे अव्यवस्थित कर दिया
अब हंसी आ रही है
ये अच्छा है कि हममें
स्वयं पर हँस सकने जितनी मूर्खतापूर्ण मासूमियत बची रहे


बहरहाल मैने अपने मोबाइल के स्क्रीन पर
सुंदर फूलों से भरा वॉलपेपर सेट कर रखा है
मैसेज टोन में चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देती है।



(10) कमतर मैं


अपने से छोटों को मैं प्रायः ये सलाह देती हूँ,
जो चाहो, सब करो।
न कर पाने की
कोई हताशा, कोई निराशा न रहे।
उम्र के इस पड़ाव पर मुझे दुख होता है
मैने जो चाहा, वो कभी कर नही पाई।
घर,दुनिया, दुनियादारी, स्वभाव, व्यवहार, संस्कार की पाठ से ओतप्रोत मस्तिष्क
घिरा रहा संकोच की दीवारों में।
इच्छाओं, उत्सुकताओं का गला मन मे ही घोंटा मैने।


मुझे पछतावा है मेरे कमतर प्रयासों का
मुझे क्षोभ है
स्वयं पर लगाये अंकुशों का।
मैने खुल कर कभी प्रेम नही किया
प्रेम किया तो स्वीकार नही कर पाई।


घृणा भी छुप छुपाकर किया मैने।
जिसे दिखाना चाहा उसकी मक्कारी का दर्पण
उसकी बातों के उत्तर मुस्कुरा कर दिए।
उसे जीभर कोस भी नही पाई
भला बुरा भी नही कहा कभी
जिसे चीख कर गालियां देना चाहती रही



संपर्क :
राखी सिंह
मो. - 8340510683
ईमेल - iamonlyrakhi@gmail.com

श्रीधर करुणानिधि की कविताएं



श्रीधर करुणानिधि का पहला कविता-संग्रह है, ‘खिलखिलाता हुआ कुछ’। उनकी कहानियां और कविताएँ हमारे बीच लगातार आ रही हैं। वे यथार्थ के बदलते स्वरूप से आगाह करते हैं, उसके लिए चिंता करते हैं... पर अवसाद में ही रहने नहीं देते, उम्मीद भी बँधाते हैं। आइए, हम उनकी कविताएँ पढ़ते हैं।


1. थोड़ा और अंधेरा दे दो

अंधेरगर्दी में कितना अंधेरा मिलाया जाता है
अंधेर को अंधेरे की और कितनी जरूरत होती है?
है कम तो थोड़ा और बढ़ा लो‌ भाई
रोशनी के स्याह अंधेरे में
हॉकी स्टिक, कट्टे और पेट्रोल बमों के साथ
चौराहे पर रंगबाज की तरह मंडराने आओ
बांए हाथ से आग का खेल खेलने आओ
गुटखे की दुकान से सिगरेट और माचिस मांगते हुए
अचानक माचिस की आग को
शांत और खुशमिजाज शहर पर पिघलाए लोहे की तरह
उड़ेल दो
हो सकता है भाई तुम मेरे मित्र-परिचित होओ
फिर भी शहर के किसी सुन्दर पार्क की बेंच से
अचानक निहत्था आदमी समझ कर मुझे ही
खींचकर चौराहे पर ले आओ
देश की सेवा करने की गुस्ताखी करो
यह कहते हुए कि 'प्यारे देश वासियो
हमें इस धर्म के संकट से उबार लीजिए
हमें अपना काम करने दीजिए
वे हमारे देह के पसीने में बदबू की तरह घुस आए हैं’

ये सोचना गलत है तुम सतर्क नहीं करते
हम तुम्हारी आदतों को इग्नोर कर जाते हैं
ये सोचना गलत है कि तुम और तुम्हारे जैसों
की भाषा को चाय के छन्ने की तरह छाना नहीं जा सकता
बस हम चाय गटक कर भाषा के पीछे छिपे विचार पर
बात करना भूल जाते हैं
ये सोचना भी ग़लत है कि तुम और तुम्हारे जैसे लोग
माला पहने हुए गलियों में
नहीं घूमते खुलेआम
तुम पर फूलों की बरसात करने वाले हम नहीं हैं
शायद ये सोचना भी ग़लत ही है

जब भी कोई सचेत होकर भाषा पर बात करेगा
उसपर भी बात करने में तुमको कोई गुरेज नहीं होगा
ये सोचना गलत होगा कि तुम अहिंसा पर बात नहीं कर सकते
रोशनी पर बात नहीं कर सकते
हम किस मुंह से कहें
किस वक़्त के आगे
हाथ फैलाएं
क्या यह कहते हुए
कि थोड़ा और अंधेरा ही दे दो भाई...


2. भुतकही

पारखी आँखे नजरें भांप लेती हैं
आवाज का वजन आवाजें खुद नाप लेंती हैं
और बोलने से रास्ते में क्या
भूगोल नहीं आता है?
फुसफुसाने से
कहानियों में पालथी मार कर बैठे 
आदिम मुहावरे बाहर नहीं आते?
इतिहास हमारे न थे
और न उन गपों के संदर्भ
क्या देवता ऐसी डींगें हाँक सकते हैं?
क्या देवता दासों के सिर पगड़ी रखकर
बेइंतहा खुश हो सकते हैं 
क्या बालों में फूलों का जूड़ा लगाई 
सुन्दर स्त्रियों की ओर 
मंत्र बाण चलाए बिना रुक सकते हैं
हवाएँ चलती रहती हैं चलती रहती हैं
मौसम बदलते रहते हैं बदलते रहते हैं
देवताओं के स्वाद भी!
आमीन!
और क्या ऐसा हो सकता है 
कि छीनी गई जमीनों पर स्वर्ग न बने
राजपथ की बिना गड्ढे वाली समतल काली चिकनाई पर कैद से छूटा दास-अपराधी
मूर्छित न हो?
क्या रक्त-पिपाषु जबड़े की पकड़ से आक्रांत
क्रांति-क्रांति चिल्लाते राजशी वेशधारी
देवताओं के महलों की ओर ना जाकर
उस ओर चले जाएँ
जहाँ बगीचे के सड़े फल फेके जाते हैं..
वहाँ जहाँ गुप्त गुफाओं में बन्दी रखे जाते हैं

3. रोटी

कछुए की उभरी पीठ की लगभग दुगूनी 
उसकी छाती और पीठ है..
क्योंकि ये मेरे अनुमान का कच्चा सा हिसाब है
वसंत के आने की आहट में 
गालों के फूलने और सिंदूरी रंग के हौले से पसर जाने को 
इसमें मिला कर देख लें 
हो सकता है वो तब भी मिले
पंजाब हरियाणा और दिल्ली से लौटते 
रेल के डिब्बे में मजदूर के गमछे में 
सूखे पापड़ की शक्ल में 
छंटनी के बाद उनके
बटुए वसंत के सूखे पत्तों से पड़े-पड़े 
हवा के थपेड़ों से यहाँ-वहाँ हो रहे
अब आप कहीं चाँद के बारे में तो नहीं सोच रहे
वो बौराकर कहीं फूल गया होगा
अगर सपने में यह हो भी गया हो
गुदरी लपेटे बुढ़िया अपने चूल्हे से उतार कर
चिमटे से उसको फोड़ देगी
फूले गाल सा मचलता वसंत
बुढ़िया के खोंइछे में सूखी रोटी होकर
पंजाब से लौटे बेटे की बाट जोहता है...

4. माँ को धरती पुकारता हूँ

पृथ्वी को इतना धीरे बुलाता हूँ
कि एक गेंद लुढ़कती हुई मेरे पास आती है
जिससे मैं दिन भर खेलता हूँ, उसे पटकता हूँ...
तितली के पीछे दिन भर 
इस कदर भूखा- प्यासा भटकता हूँ 
कि चाँद सा दूध का कटोरा सामने आ जाता है
जिसे मैं फेकता हूँ इधर-उधर गुस्से से
कितने मनुहार के बाद चम्मच- चम्मच दूध जाता है मेरे दुधिया दाँतों के पार
मैं एक बच्चा हूँ हमेशा से 
बड़ा होकर भी एक बच्चा होता हूँ
मेरे नाखून बड़े हो रहे हैं दिनों दिन
वे जख्मी करने लगे हैं सबको
तब भी वे बाहें मुझे सहारा देती हैं 
तब भी एक गोद मेरा भार उठाने को तत्पर है
एक पुचकार है 
जैसे हवा पेड़ों को देती है
जैसे चाँदनी रतजगे पक्षी को देती है
जैसे धरती अपनी गोद में सोए बीजों को देती है
इसलिए
माँ को धरती पुकारता हूँ....


5. टकटकी भरी निगाह

सारी उम्मीदें वहीं टिक जाती हैं
जहाँ कतार बाँधकर नन्हीं चीटियाँ
अपने से दूना आकाश उठाए 
धरती के एक छोर से दूसरे छोर चलती चली जाती हैं
कड़ी धूप में मजदूरों का समूह
हाइवे की रोड़ियाँ बिछाता हुआ
दुनिया की सीमाओं को छोटा कर 
एक अन्तहीन रास्ता बनाता चला जाता है
सड़क किनारे घास चरते पशुओं के नथुने की हवा से
उड़ा तिनका सबसे जुल्मी तानाशाह की आँख में जाकर
उसके साम्राज्य में खलबली मचा देता है
समूह को लड़ने की शक्ति देकर
अकेले में रोज दुख से कराहता एक आदमी
अपने सबसे प्रिय व्यक्ति की गोद में
सिर रखने की जगह तलाशता है
और समूह को अपनी पहचान देकर
कमर कसता है रोटी की लड़ाई के लिए
उम्मीदें वहीं टिक जाती हैं....


6. तय कर लेते हो

बस्तियाँ खाली हो रही हैं...
'खाली होना' कितना छोटा शब्द है
पर है कितना हहाकार भरा
हथियारों के ज़खीरे भरे जा रहे हैं
'भरा जाना' कितना बड़ा शब्द है
पर है कितना खोखला
नंगी आँखों दिखतीं हुई उल्का पिंड की बारिश
तिनके- तिनके जलते हुए जंगल 
बसे हुए घरों की छतों पर होतीं आतिशबाजियाँ...
जिसने भी कर रखी है 
इन दृश्यों के ख्वाबों की खेती..
क्या उन्हें नहीं पता खाली होने का अर्थ
क्या उन्हें खंडहर के चेहरे याद नहीं
वे जो तय कर लेते हैं मिनटों में
सुकून का सौदा
वे जो बड़े ठाठ से उगा लेते हैं बम और बारूद
वे जो टैंकों का मुँह मोड़ देते हैं बस्तियों की तरफ
पूछो उनसे
पूछो कि कैसे संभाले हो हुनर 
फिजा बदलने की???

7. थाप

हवा का शोर मद्धिम है...
सन्नाटे की उदासी नहीं
सड़कों के दोनों तरफ अनवरत
जिंदगी के काफिले..
शोर नहीं 
आहटें 
कितना सूखा?
फिर भी सफर के वे दोस्त 
वे हरे दरख्त
थाप की तरह बजते हुए
एकांत के संगीत में...


8. पतझड़

'थोड़ा रुको', 'साँस लो'
मैंने टूटे पत्ते से कहा
पके अमरुद की खुशबू 
मेरे पास पसरी किताबों पर बिखर गई
पन्नों में जीवन इतना था
जितना नीचे झड़े पत्तों में खुद पेड़
सूखे में एक विचार पत्ता हो गया था
'पतझड़ आया हुआ है
और विचार पत्तों की तरह झर रहे हैं'
एक राजपुरुष घोषणा करता है....


9. पृथ्वी के पास

पूछ ही लेंगे
मिट्टी होने पर 
पौधों की जड़ों में चिपकी मिट्टी का तजुर्बा 
जान ही लेंगे
फलों को पकते देखकर 
एक छोटी चिड़िया के चोंच में हुई 
अजीब सी अकुलाहट
देख ही लेंगे
खिलते फूलों की ओर 
जहाँ से आती तितली के पंखों से
बनते हैं इस धरती के रंग
कि फूलों के रंग से तितली
कि मिट्टी के रंग से हम-तुम 
कि पकते फलों से खूशबू की अनंत परतें
कि एक चिड़िया की अकुलाहट
और हरेपन की छाया में बादल का बनना
और फिर
पृथ्वी अपने हरे सपने से
कूदकर गिरती है एक सूखे जंगल में..


10. कौवे

तीतर और मुर्गे के सामने
जब भी प्रश्न आएगा 
कौवे उत्तर देने के लिए आगे आ जाएँगे 
और इस तरह से 
दुनिया के तमाम सवालों पर कौवे की राय
महत्वपूर्ण हो जाएगी..
कर्कश आवाज 
अब जानी पहचानी हो जाएगी
जानते जानते लोगों को मिर्च की तासीर 
जँच जाएगी...
कहते हैं आवाज को आवाज से नहीं 
उम्मीद से बाँधा जाता है
इसलिए
एक साथ काले डैनों वाली उम्मीदें
आसमान को बांध लेंगी...
किसी प्रश्न के जवाब में 
तीतर, बटेर, गोरैया, मुर्गे या अबाबील की आवाजों के बदले
सिर्फ कौवे की आवाज आकाशवाणी की तरह गूंजेगी...


11. पुकारते हुए उन्हें....

बुझौवल सा उलझा हुआ
एक रस्ता बन्द सा कि जाओ कहीं भी
घूम कर पहाड़ सा एक अंधेरा डर का
एक तन्हाई सफेद दिखती चादर में लिपटी 
अंधेरी स्याह गुफाओं सी .......... पड़ी है
पुराने खत- सी छूटी हुई यादें 
कोई अन्जान गली 
कोई शहर अनचीन्हा
बस इतना भर कि देर रात चाँदनी से नहाई मुंडेरें
पुकारने की हद तक बुलाती हुई.....
टूटे-फूटे मटके से कुछ रिश्ते
बेडौल सी कुछ आकृतियाँ
एक पुल ऊपर जाता हुआ 
सड़े पानी के तालाब में तैरती गेंदें
उन्हें ललचाई आँखों से देखते खेलने को आतुर बच्चे...
मैंने अब जाना
किसी को पुकारने के लिए जिन्दगी बहुत थोड़ी है...


12. बक्सा

मोह से खुलता है प्यार 
प्यार से बादल के हल्के भीगे गट्ठर
गट्ठर की भीगी बासी खुशबू से 
खुलता है तन 
मन की चाबी पास हो तो मुझे दो
ताजा होकर जाओ 
कुएँ की पीठ पर ईंट के टुकड़े से
मेरा नाम लिख दो
बहुत सहेज कर एक खुशबू को 
पानी की सतह पर
बंद कर दिया
तेरे नाम के साथ 
मैंने...


13. बुलबुले

हवा का रंगहीन 
पानी के रंग से अलग 
झील में लाश सा डूबे दरख्त पर
मीठे शब्दों की इबारत लिखता है
'सूखा' एक भूरा रंग है
पहाड़ से लिपटा, धरती की गोद में सोया
पानी के बुलबुले का आईना 
कितनी झूलती गर्दनें दिखाता है...
'किसान' एक गूंजती आवाज है
हर जगह, हर ओर
कितनी छातियाँ फटती हैं
नकली उम्मीदों के सूखे से!
धरती फट रही है
दिखाता है झील के पानी में 
पत्थर की हिलकोर से बना एक बुलबुला....


परिचय :

नाम - श्रीधर करुणानिधि
जन्म - पूर्णिया जिले के दिबरा बाजार गाँव में
शिक्षा - एम॰ ए॰ (हिन्दी साहित्य) स्वर्ण पदकपी-एच॰ डी॰पटना विश्वविद्यालयपटना।
प्रकाशित रचनाएँ- दैनिक हिन्दुस्तान’,‘उन्नयन’ (जिनसे उम्मीद है काॅलम में),‘पाखी’, ‘वागर्थ’ ‘बया’, 'वसुधा', ‘परिकथा’ ‘साहित्य अमृत’, ‘जनपथ’ ‘छपते छपते’, ‘संवदिया’, ‘प्रसंग’, ‘अभिधा’, ‘साहिती सारिका’, ‘शब्द प्रवाह’, ‘पगडंडी’, ‘साँवली’, ‘अभिनव मीमांसा’, ‘परिषद पत्रिका’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ,कहानियाँ और आलेख प्रकाशित। आकाशवाणी पटना से कहानियों का तथा दूरदर्शनपटना से काव्यपाठ का प्रसारण।
प्रकाशित पुस्तकें-1. ‘वैश्वीकरण और हिन्दी का बदलता हुआ स्वरूप’ (आलोचना पुस्तकअभिधा प्रकाशन,मुजफ्फरपुरबिहार)
2. ‘खिलखिलाता हुआ कुछ’ (कविता-संग्रहसाहित्य संसद प्रकाशननई दिल्ली)
संप्रति-
बिहार सरकार की सेवा में
(वाणिज्य-कर पदाधिकारीवाणिज्यकर अन्वेषण ब्यूरो,मगध प्रमंडल,गया )
संपर्क- श्रीधर करुणानिधि
द्वारा- श्री श्याम बाबू यादव
चौधरी टोलापत्थर की मस्जिदमहेन्द्रूपटना-800006
मोबाइल- 09709719758
ई-मेल- shreedhar0080@gmail.com