लौटना

आकाश की नजरें सूरज के स्कोर–कार्ड पर जमी थी। सूरज का मार्क्स इस बार बहुत ही खराब हुआ था। टीचर कह रही थी, "आपके दोनों बच्चे बहुत अच्छे हैं...विनम्र एवं मृदुभाषी!...पर थोड़ा दायित्व तो आपका भी बनता है। घर में सूरज और आकृति को आपका साथ चाहिए।"

आकाश जल्दबाजी में बोल उठा, "मैं तो साथ बैठता ही हूँ, पर सूरज उस अनुसार ध्यान ही नहीं दे पाता।" उसे लग रहा था जैसे आगे के शब्द गले में अटक–से जा रहे हैं। वह अब और इस स्थिति का सामना नहीं कर सकेगा। जितनी जल्दी हो...यहाँ से निकल ले। बाकी औपचारिकताओं को निभाते हुए वह बच्चों को लिए निकल गया। सूरज का हाथ पकड़े वह अपने पुराने दिनों में गुम होता जा रहा है।

आकाश! सभी सीमाओं से मुक्त एवं सबको अपने में समाहित करता ! उसमें हमेशा असीम विस्तार की संभावना है। इसी संभावना ने तो उसे आगे बढने को प्रेरित किया है। परन्तु उसपर इस तरह आगे बढते रहने की धुन ऐसे ही तो नहीं सवार हुई थी। कहते हैं...हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है। हाँ तो वह स्त्री थी...रजनी! ...उसकी सहपाठी, जो आठवीं कक्षा में उसके स्कूल आई थी। उस वय में प्यार की परिपक्वता तो नहीं होती, पर एक–दूसरे के प्रति आकर्षण प्रबल होता है।

वैसे भी उन दिनों वह सिलेबस की किताबों से अधिक घर में कभी दादाजी के साथ रामायण, महाभारत आदि के किस्सों में तो कभी छुप–छुपकर गुलशन नंदा एवं रानू की रूमानी कहानियों में खोया रहता...उसपर अब एक नया आकर्षण!...पर यह आकर्षण सिर्फ यहीं तक सीमित रहता तो कोई बात न थी। अक्सर जहाँ आकर्षण में प्रेम न पनपे, वहाँ प्रतिद्वंदिता शुरू हो जाती है और प्रतिद्वंदिता में बातचीत के मौके कम से कमतर होते जाते हैं। यहाँ भी यही होना था। उसकी भी रजनी से सीधे बातचीत न होकर कभी–कभार औपचारिकतावश ही हो पाती थी। समय सरकता जा रहा था, पर उसकी अभिव्यक्ति मूक ही बनी रही।

उसे रजनी की तरफ से आकर्षण का पता तब चला, जब दसवीं बोर्ड की परीक्षा के पहले क्लास की लड़कियों द्वारा एक छोटी–सी पार्टी दी गई जिसमें स्कूल के शिक्षक एवं क्लास के कुछ लड़के भी शामिल थे। उसे आज भी याद है कि उसने एक दोस्त के बहुत कहने के बावजूद भी शामिल होने से इंकार कर दिया था। लौटते वक्त उसने देखा...उसकी आँखें नम थीं तथा बाद में उसके दोस्त ने बताया था कि वह कह रही थी..."आकाश अपने–आपको समझता क्या है?"

दूसरा मौका था, जब वह पॉलिटेक्निक का फॉर्म भर रहा था। उसे पता चला...वह सहेलियों के बीच कह रही थी..."आकाश पर मुझे विश्वास है, वह जरूर सफल होगा।"

उसके बाद बोर्ड परीक्षा हुई और तब से आजतक कभी उसे नहीं देखा है, पर उसके प्रेम और विश्वास को अमानत की तरह महफूज रखे हुए है। उसका प्रेम है भी तो एक अलग ही तरह का...दोनों में से किसी ने भी अपने को एक–दूसरे के समक्ष अभिव्यक्त नहीं होने दिया। आज भी लगता है कि उसके पूरे वजूद पर वह छाई हुई है। वही उसकी प्रेरणा है। ...और वह रजनी ही क्या...जो आकाश एवं उसके साम्राज्य पर अपना आधिपत्य साबित न कर दे।

उसकी कहानी अब नया मोड़ लेती है। हाईस्कूल से निकल आगे की पढाई करने वह शहर आ गया था, जहाँ एक बार फिर से वह अपनी चाहत लिए भटकता रहा। किसी का प्रेम एवं विश्वास उसके हिस्से नहीं आया जिसमें वह रजनी के प्रेम की पूरकता पा सके। इसी खोज में वह पढाई से कटता चला गया। उसने किसी तरह हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास की। आज सूरज का रिजल्ट देखकर उसका दिल धक् से रह गया।

हायर सेकेंडरी की पढाई के बाद वह सबकुछ पीछे छोड़ अपने–आपको रजनी के विश्वास की कसौटी पर परखने की कोशिश करता। उसने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसपर जुनून छाया रहता कि वह रजनी की नजर में सफल दिखे। कभी–कभार उसका समाचार मिल जाता तथा वह भी उसकी सफलता का समाचार जान जाती थी...इसका पता उसे चलता रहता था। इसी क्रम में ही उसकी जिंदगी में वसुंधरा आई जिसने अपने समर्पण से प्रेम की रिक्तता को भर दिया था, पर रजनी का विश्वास अभी भी उसकी पूंजी थी। इस कारण कभी–कभी दिल और दिमाग परस्पर विपरीत ध्रुवों की ओर बढने लगते हैं। ऐसी परिस्थिति में वह घर में रहते हुए भी घर का नहीं रह पाता है। उसने जिंदगी में अबतक सिर्फ अपनी सफलता का आनंद मनाया है। अपनों पर ध्यान ही कहाँ दे सका है इन सालों मे..! आज वह जब भी सूरज की तरफ देखता है...खुद को अपराधी महसूस करता है। वसुंधरा को उससे कोई शिकायत नहीं है। वह धीर–गंभीर है। वह तो आजतक उसके पथ का संबल बनी रही है। मगर आज उसकी आँखों के कोरों को भींगते हुए देख चुका है...महसूस कर रहा है कि अपनी चाहत के फेर में वह वसु को संपूर्णता में चाह नहीं सका है। 

आज यही सोचते हुए दिन गुजर गया। शाम होते ही उसने सूरज को पास बुला लिया है। आकृति उसके आगे ठुनक रही है। वसुंधरा पास खड़ी उसके अंदर के झंझावातों से अनजान मुस्कुराए जा रही है।

अगली सुबह आकाश सबसे पहले जागा। उठकर उसने खिड़की के परदे सरकाये। सुनहरी आभा अंदर आ रही है। वह सोए हुए सूरज को थपकी देता है। फिर वाश–बेसिन के पास जाकर चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे मारने लगता है।


1 टिप्पणी:

राठौर नितांत ने कहा…

बढ़िया 👌