शांति का शोक

युगों पहले...
शांत थी सारी दुनिया
मंथर गति से चलायमान था जीवन
प्रकृति नहीं थी संतुष्ट
रचना कर श्रेष्ठ जीव की
दे दिये सभी गुण
दे न पाई आपसी विश्वास

दुनिया बदलती गई
दिन लंबे होते गए
रास्ते बन गये आकाश में
झुक गये पहाड
तोड़े जाने लगे
नश्वरता के नियम

गतिमान हो गया जीवन
बढ़ने लगी अशांति
मूक बनी प्रकृति
हर दुःख को सहती रही
बचपना है, गुजर जाएगा
इंतजार करती रही

सदियां गुजरती गई
शांति भटकती रही
होते रहे...
समझौते के लिए युद्ध
युद्ध के लिए समझौते
बँटी हुई दुनिया
आज भी भाग रही है
शांति की ओर..!

4 टिप्‍पणियां:

दर्पण साह ने कहा…

ramdhari ji 'dinkar' vakai chayadi yug ke utkrishit kavi the...

पर प्रकृति नहीं थी संतुष्ट,
रचना कर एक श्रेष्ठ जीव की
दे दिये उसमें सभी गुण
पर दे न पाई आपसी विश्वाश।


sahi kaha...
aur isi karan manav aur prakarti ki jang hamesha chlti rehit hain...
aur vijay hamesha prakriti ki hoti hai...
USA main aaiya tsunami hridya vidarak rha...

Science Bloggers Association ने कहा…

Bahut gambheer bhaav.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Jayram Viplav ने कहा…

राष्ट्रकवि दिनकर की रचना देश-काल के सीमाओं से परे और सदैव प्रासंगिक है . आप हमारे समुदायिक मन्च पर लिखने हेतु सदर आमंत्रित हैं ,जल्द ही आपके पर मेल भेज दिया जाएगा .

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है, आपके लेखन में प्रखरता की आकांक्षी हूँ .......