उपासना की कहानी 'सर्वाइवल' : एक मूल्यांकन



नया ज्ञानोदय के उत्सव अंक (अक्टूबर, 2017) में भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार प्राप्त उपासना की कहानी ‘सर्वाइवल’ ने अपने भाषा-शिल्प एवं कथ्य से सहज ही आकर्षित कर लिया। जिन्होंने उस कहानी को पढ़ा होगा, उनके पास तारीफ के ही शब्द होंगे। कथ्य पर ध्यान देते हुए मुझे याद आया कि कभी एक ऐसी ही एक कहानी पढ़ चुका हूँ। स्मृतियों को रिवाइंड करने पर याद आया कि ऐसी ही एक कहानी ‘अज्ञेय’ ने लिखी है। फिर से उस कहानी को पढ़ा। तो, वह कहानी है – ‘हीली-बोन् की बत्तखें’।

अज्ञेय की कहानी में मुख्य पात्र है, स्त्री – हीली-बोन्, जो पर्वतीय क्षेत्र के सौंदर्य में अपने अकेलेपन को भोगने के लिए अभिशप्त है। कभी उसने प्यार भी पाया था, पर उसने स्वयं ही तो अकेलेपन का चयन भी किया था। उस अकेलेपन से उपजे खालीपन को दूर करने के लिए हीली बत्तखें पालती है, जिनके अंडों से उसके जीवन-यापन का खर्च भी निकल आता है। वहाँ के लोग उसके बारे में कहते हैं कि वह सुंदर है, पर स्त्री नहीं है। वह बाँबी क्या, जिसमें साँप नहीं बसता? 

वहीं उपासना अपनी कहानी ‘सर्वाइवल’ में मुख्य पात्र पुरुष को बनाती है – एक बेरोजगार छात्र, जो हीली-बोन की तरह ही घर-बाहर ‘अनप्रोडक्टिव’ का तमगा पाता है। वह भी टिप्पणी पाता है – “काम का ना काज का”। वह जिस मोहल्ले में रहता है, वह कबूतरों का मोहल्ला है। वह भी कबूतरों को पालता है और उसे अपने कबूतरों पर गर्व है, जैसा कि हीली अपने बत्तखों पर गर्व करती हैं कि इतनी सुंदर बत्तखें ख़ासिया प्रदेश में और नहीं हैं।

दोनों ही कहानियों में एक दिन अचानक परिवर्तन आता है। हीली की बत्तखें मारी जाती हैं…हर दूसरे-तीसरे दिन और वह कुछ कर नहीं पाती। उसके चार बत्तख इसी तरह मारे चले जाते हैं। इसी तरह ‘सर्वाइवल’ कहानी में मुख्य पात्र के कबूतर एक बाद एक, तीन मारे जाते हैं। चौथा लापता हो जाता है।

दोनों ही कहानियों में हत्यारे की पहचान होती है। हीली-बोन् की बत्तखों को लोमड़ी मार ले जाती है, वहीं उपासना की कहानी में कबूतरों की हत्यारिन रहती है – बिल्ली। सर्वाइवल कहानी का नायक, बेरोजगार छात्र, बिल्ली को मारने की ताक में रहता है और उसे मौका भी मिल जाता है, जब उसके माता-पिता एक रिश्तेदार के यहाँ शादी में शरीक होने चले जाते हैं। पहली बार वह दूध में जहर की गोली मिलाकर देता है, पर वह उसके पास नहीं आती। फिर वह रोज दूध-रोटी देते हुए उसे एक तरह से आश्वस्त कर देता है। ऐसे ही एक दिन मौका पाकर वह दूध पीती बिल्ली पर पेपरवेट दे मारता है और वह दम तोड़ देती है।

अज्ञेय की कहानी में हीली-बोन् के मरते हुए बत्तखों की बात जानकर एक फौजी अफसर उसकी सहायता को आता है। हीली को विश्वास होता है कि वह लोमड़ी को जरूर मार देगा। और उसी रात बंदूक की आवाज भी होती है तथा सुबह कैप्टन दयाल आकर कहते हैं कि शिकार जख़्मी हो गया है। फिर वे उसे दिखाने ले जाते हैं।

अब अज्ञेय और उपासना अपने पात्रों के जरिये कहानी के उपसंहार तक पहुंचते हैं, जहाँ एक की मौत के बाद दूसरी जिंदगियां किस तरह सामने आती हैं…यह देखना है। हीली को कैप्टन दयाल एक दृश्य दिखाते हैं। अज्ञेय लिखते हैं – “अंधकार में कई-एक जोड़े अंगारे से चमक रहे थे।"

उपासना की कहानी का नायक गाँव से आकर तीखी असहनीय गंध का पीछा करते हुए देखता है कि “दो बेहद कृशकाय बच्चे थे। एक निश्चेष्ट पड़ा था। दूसरा मुझे देख भयभीत हो कोने में दुबक गया।“ अज्ञेय की तरह ही वे आगे लिखती हैं – “कोने में अंधेरा-सा है। अंधेरे में बस उसकी कंचे-सी आँखें चमक रही हैं।”

हीली जो दृश्य देखती है, उसका वर्णन अज्ञेय ने जिस तरह किया है, आप भी देखें – “खोह की देहरी पर लोमड़ी का प्राणहीन आकार दुबका पड़ा था – कास के फूल की झाड़-सी पूंछ उसकी रानों को ढंक रही थी जहाँ गोली का जख्म होगा। भीतर शिथिल-गात लोमड़ी उस शव पर झुकी थी, शव के सिर के पास मुँह किये मानो उसे चाटना चाहती हो और फिर सहमकर रूक जाती हो। लोमड़ी के पाँवों से उलझते हुए तीन छोटे-छोटे बच्चे कुनमुना रहे थे। उस कुनमुनाने मे भूख की आतुरता नहीं थी, न वे बच्चे लोमड़ी के पेट के नीचे घुसड़-पुसड़ करते हुए भी उसके थनों को ही खोज रहे थे।”

कैप्टन दयाल कहते हैं “यह भी तो डाकू होगी – । कोई उत्तर नहीं मिलने पर उन्होंने फिर कहा – “इसे भी मार दें – तो बच्चे पाले जा सकें।” फिर पीछे हीली को न देख उसी तरफ चल देते हैं। वहीं उस करुण दृश्य को झेलने में असमर्थ हीली उन्माद की तेजी से दौड़ते हुए सीधे बत्तखों के बाड़े में पहुंचती है तथा एक-एक करके अपने ग्यारह बत्तखों को ‘डाओ’ से गला काटकर हत्या कर देती है। वह सहानुभूति दिखाते कैप्टन को ‘हत्यारा’ कहती है और उसकी आँखों में एक सूनापन शेष रह जाता है। ‘सर्वाइवल’ कहानी का पुरुष पात्र बस बिल्ली की भयभीत आँखों में ‘पंखों की बेचैन फड़फड़ाहट' महसूस करता है और पसीने में भींग जाता है। उसके पास एक भी कबूतर नहीं बचा है, फिर उसकी कौन-सी प्रतिक्रिया की किसीको जरूरत है। 

अज्ञेय की कहानी में हीली को लोमड़ी के परिवार को हुआ अभाव अपने अभाव जैसा लगता है तथा सभी बत्तखों को मारकर अकेले हो जाने की तैयारी उसकी नारी संवेदना है जिसका तादात्म्य मादा लोमड़ी से जुड़ जाता है। ज्ञात हो कि कहानी की शुरुआत में ही एक वाक्य आता है कि हीली सुंदर है, पर स्त्री नहीं है। अज्ञेय जहाँ जीवन की विडंबना एवं मानवीय संवेदना दिखाने में गहरे जाते हैं तथा सफल भी हुए हैं, वहीं उपासना अपनी कहानी में चूक गयी हैं तथा कहानी मुख्य-पात्र के अवसाद में ही खत्म हो जाती है। वे कहानी के आरंभ से अंत का कोई सूत्र जोड़ नहीं पाती हैं।


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