सियाहत : विनीता परमार की नज़र में



नक्शा बिछाकर और फिर उसपर अंकित स्थानों को अपने पैसे और गाड़ियों की सहायता से नापने का नाम ‘घुमक्कड़ी’ नहीं है। यह मानव को परंपरा से मिली हुई प्रवृत्ति है जिसके लिए उसका सहृदय होना अनिवार्य है। वह किसी स्थान पर ठिठकता है तो उसकी भौगोलिकता में ही नहीं, बल्कि उसके अतीत में भी वह भ्रमण कर रहा होता है… उसकी संस्कृति को आत्मसात कर रहा होता है। फिर जब वह यायावर लिखने बैठ जाता है या राह में ही उसे दर्ज करता जाता है तो पाठक को उस प्रदेश की बोलती चीजें ही नहीं अपने में मौन खड़े शिला, द्रुम या अन्य चीजों को अभिव्यक्ति का पता चलने लगता है… तब यह घुमक्कड़ी की प्रवृत्ति कला का रूप ले लेती है। पिछले साल कथेत्तर गद्य की श्रेणी में ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार ऐसे ही यायावर आलोक रंजन को मिला। उनकी कृति का नाम है – सियाहत। अभी तक इन पंक्तियों का लेखक उसका आस्वादन नहीं कर पाया है, पर उसका मन ललच रहा है। विनीता परमार शिक्षिका हैं और खुद एक रचनाकार भी। उन्होंने एक घुमक्कड़ की सहृदयता को उसी तरह पढ़ा भी है। चलिए, हम भी उनके पाठकनामा से रूबरू होते हैं।

आलोक रंजन  की ‘सियाहत’ मेरे पास पिछले दो महीनों से आई थी लेकिन घर पर नहीं रहने के कारण मैं इसे पढ़ नहीं पा रही थी । जन्माष्टमी की छुट्टियों में घर आई हूं और मैंने उस किताब को पढ़ने की ठान ली। बड़े ही सहज शैली में लिखी इस किताब ने ऐसा बांधा जैसे मैं खुद एक रोमांचक यात्रा में हूं। इस पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत रही है यात्रा संस्मरण, डायरी, रिपोर्ट... किसी शैली में लिखने के बावजूद लेखक ने भारत के आम जीवन की समस्याओं भाषायी अंतर  को बड़े ही सहज तरीके से लिख डाला है। इस पुस्तक में सहज ढंग से पर्यावरणीय समस्याओं और सरकारी योजनाओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। हमारे देश की योजनाएं जमीन पर आते ही दम तोड़ देती हैं । जीवन-दर्शन को बताती पंक्तियां अनायास ही सोचने को मजबूर कर रही हैं। पूरी पुस्तक पढ़ने के बाद मुझ जैसे एक आम पाठक को शब्दकोश देखने की आवश्यकता नहीं महसूस हुई। लेखक घटनाओं और उदाहरणों के माध्यम से देश की व्यवस्था पर बड़ा ही सहज कटाक्ष कर रहा है। रोज की बातों की तुलना करते हुए देश के विभिन्न भागों को जानने के लिए नया आयाम खोल रहा है। इस समूची यात्रा में लेखक कई जगह अपनी जान जोखिम में भी डालता है। यह साहस और रोमांच लेखक के जुनून को बताता है ।
आलोक ने अपनी यात्रा को सियाहत के जरिए एक मीठी और स्वप्न वाली कहानी बनायी है। आलोक के शब्दों में "क्या कभी कोई यात्रा समाप्त होगी "? सच पाने की यह सुखद यात्रा का जो वर्णन उन्होंने किया है… लगता है कुछ छोटे झरने के छींटे हमें भी छू कर चले गए। रोज की भागदौड़ में हमारा मन थकता जरूर है लेकिन ऐसी सुखद यात्रा कभी किसी का मन थकाने वाली नहीं है। "जहां से मन थक जाएगा वहां से लौट आएंगे" मैंने भी  पढ़ते समय यही सोचा लेकिन सियाहत में ऐसे डूबती गई… मन थका ही नहीं ।
आलोक के शब्दों में - "पानी का टुकड़ा देखकर हँस रहा होगा" रोमांचित कर रहा है। दिनाकरन के खेतों का वर्णन… "कोको और इलायची का साक्षात अनुभव… काली मिर्च की लताएं होती हैं । मुझे इसी किताब से पता चला "पदीमुखम" की छाल के साथ पानी को उबालने से पानी शुद्ध हो जाता है। अगर इसकी जानकारी सभी लोगों को हो तो निश्चय ही केंट,एक्वागार्ड जैसे पानी-शोधन के उपकरणों को घरों में लगाने की जरूरत नहीं होगी ।
आलोक के दक्खिन पवन का वर्णन पढ़ते हुए लगता है जैसे किसी कहानी से गुजर रही हूं। "दिन कितना भी गर्म क्यों न हो शाम किसी भी अवसाद की गिरफ्त में आने नहीं देती।” हवा, मन और शाम में से किसी को उसकी परवाह नहीं। लेखक के साथ सारा की मुलाकात और यहूदियों के प्रति जिज्ञासा मुझे भी उस ओर प्रेरित करती है कि मैं भी उन इजरायलियों और फिलिस्तीनियों के इतिहास को जानूं। सिनेगॉग की परिकल्पना मुझे भी गूगल पर ही सही उसकी खोज खबर लेने के लिए प्रेरित करती है।
लेखक के शब्दों में " रविवार का दिन मिलना कल्पना का ही दिन है। किसी महान कवि के बारे में कहा जा सकता है कि उसका सारा जीवन एक रविवार ही होता होगा"। ऐसी बातें करते हुए ओ. एम. वी. को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने जानना चाहा कि कोई कवि कैसे लोकप्रिय होता है तो यह बात दिल को छू गई जब एक सामान्य व्यक्ति ने कहा " विकोज ही वाज पो यट ऑफ आर्डिनरी मैन वीद आर्डिनरी आइडियाज"। एक लेखक या कवि तभी लोकप्रिय होता है जब वह लोगों के दिल की पुकार सुन लेता है। मुन्नार के अनछुए जगहों का वर्णन करते हुए यह बताना नहीं भूले हैं कि उदास मन कहीं भी सुकून नहीं प्राप्त कर पाता। राप्ती एक्सप्रेस की घटना मुझे अपने हॉकी टीम की लड़कियों के साथ पुणे जाने की घटना से मिलती-जुलती नजर आई ।
लेपाक्षी का वह खंभा आकर्षित करता है। हवा-हवाई यात्रा वाली लड़की अलग हो सकती है। वीरान हो चुकी जगह अक्सर हमें आकर्षित करती है। बचे हुए खंडहरों में प्रवेश कर उसके अतीत की कल्पना करना रोमांचक तो होता है… ऐसी बातों से धनुषकोटि के बारे में बड़ी ही सहजता से लिखी गई है। 1964 के इस दर्दनाक हादसे को आज ही केंपटी फॉल मसूरी में हुए विस्फोट से जोड़ने लगी।
मुतुवान के आदिवासियों के बीच जाना… भावना की भाषा को समझना बड़ा ही रोमांचित करने वाला है। जंगल के बारे में जानना… धनुष बाण से मछलियों का शिकार करना… माडम का दृश्य आंखों के सामने फादर जो के द्वारा बनाए गए हैं… ट्री हाउस की याद दिलाने लगा। आदिवासियों के साथ किया जाने वाला नृत्य धरती की लय और धुन को छूती नज़र आ रही थी। इतिहास की किताबों में विजयनगर बहमनी साम्राज्य के युद्ध, साम्राज्य विस्तार मुझे कभी अच्छा नहीं लगा। लेकिन आलोक, आयलिस, इयान और साइमन के साथ मैंने बड़ी आसानी से बीजापुर, एहोल, बादामी का दर्शन कर लिया । कुल मिलाकर इस पुस्तक ने दक्षिण भारत, उत्तर भारत, जर्मनी, इज़रायल, फिलिस्तीन सबके विविध संस्कृति को जानने के लिए प्रेरित किया है ।
परिचय :






नाम – डॉ विनीता परमार
जन्म-स्थान- बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में
शिक्षा – पीएचडी (पर्यावरण विज्ञान) ,शिक्षा में परास्नातक
व्यवसाय – शिक्षण
पद – केन्द्रीय विद्यालय रामगढ़ कैंट (झारखंड) में शिक्षिका के पद पर कार्यरत
विशेष–बया, आजकल, कादम्बिनी एवम चर्चित ब्लॉग पर कविता प्रकाशित, आलेख, लेख, निबंध, कहानी लेखन, जीवनमूल्य परक साहित्य, अध्ययन व लेखन ।

दूब से मरहम (काव्य- संग्रह) ,खनक - आखर का संयुक्त काव्य संग्रह, पत्र–पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में कवितायें प्रकाशित। शोध पत्र एवं पर्यावरण विज्ञान की किताबें सृजन प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित ।

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