दूसरा शनिवार : एक पहल

   टना हमेशा से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मुलाकातों, गोष्ठियों का केन्द्र रहा है। बिहार एवं अन्य प्रदेशों के ख्यातिनाम साहित्यकारों की मुलाकातों से यह शहर हमेशा जीवंत रहा है। हमें महसूस हो रहा था कि उस अतीत की परंपरा उतने ही सुदृढ़ एवं उत्साहजनक रूप से सामने नहीं आ रही है। ऐसा नहीं है कि पटना में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कर्मियों की कमी है, पर वे एक-दूसरे से परिचित नहीं हो पाते हैं। हम युवा अपने वरीय लोगों के साहित्यिक एव सांस्कृतिक अवदानों से अनजान रहते हैं, वहीं हमारे वरीय अपनी रचनाओं के प्रति हमारे उत्साह एवं रूचि से अवगत नहीं हो पाते हैं।

   
  शहर की सुबह व्यस्त होती है एवं दोपहर खामोशी ओढे रहती है। जीवंतता तो शाम को ही देखने को मिलती है। पटना में हमने करीब साल भर पहले इसी जीवंतता को केन्द्र में रखते हुए शाम की गोष्ठी का आयोजन प्रारंभ किया था, पर यह क्रम हमारी व्यस्तता या कहिए कि उदासीनता के कारण बरकरार नहीं रह पाया। फिर से अपनी गोष्ठी ‘दूसरा शनिवार’ की शुरुआत करने हेतु कवि प्रत्यूष चन्द्र मिश्रा, शायर संजय कुमार कुंदन, शायर समीर परिमल, कहानीकार सुशील कुमार भारद्वाज एवं कवि नरेन्द्र कुमार दिनांक 16 अप्रैल, दिन-शनिवार, संध्या- 5 बजे गाँधी मैदान में बड़ी गाँधी मूर्ति के पास एकत्रित हुए। गज़लों एवं कविताओं का दौर चला तथा निश्चय किया गया कि अब यह परंपरा टूटनी नहीं चाहिए।

 
  अतः एक बार फिर से गाँधी मैदान की बड़ी गाँधी मूर्ति के समीप दिनांक 30 अप्रैल, दिन-शनिवार, संध्या 5 बजे हम 'दूसरा शनिवार' गोष्ठी में अपने तय कार्यक्रम के अनुसार मिले। सहभागियों में  हमारे वरिष्ठ कवि योगेन्द्र कृष्णा, शायर संजय कुमार कुंदन, कवि शहंशाह आलम, कवि राजकिशोर राजन, कहानीकार सुशील कुमार भारद्वाज, आलोचक एवं समीक्षक अरुण नारायण, कवि प्रत्यूष चन्द्र मिश्रा, शायर समीर परिमल, कवि रंजीत राज, शायर अविनाश अमन एवं कवि नरेन्द्र कुमार शामिल थे। योगेन्द्र कृष्णा की रचनाओं एवं रचनाकर्म पर चर्चा हुई। उन्होंने हमसे अपनी रचना-प्रक्रिया एवं अनुभव साझा किया। हम सबने कविताएं, गज़लें, कहानियां सुनी और सुनाईं।


  जब हम गाँधी मैदान की बड़ी गाँधी-मूर्ति के समीप एक कोने में हरी घास पर बैठे अपने इकट्ठे होने की वजह पर चर्चा कर रहे थे, तो लग रहा था कि हम धीरे-धीरे ही सही...संवादहीनता की स्थिति से बाहर निकल रहे हैं। उद्देश्य एक ही था--संवाद को कायम रखना...चाहे वह कविता के माध्यम से हो या कहानी और लेख के माध्यम से। आपबीती हो या कुछ और...सब साझे की हों। हमारा प्राथमिक उद्देश्य है संवाद कायम करना एवं साहित्य-संस्कृति की परंपरा को आगे बढाना। साहित्य में रचनाकारों की परंपरा का बड़ा महत्व है। हम उसी लोकधर्मी परंपरा को आगे बढा रहे हैं।

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